The Goat Life movie review in hindi : दोस्तों इस साल मलयालम सिनेमा ने अपनी बेहतरीन फिल्मों से लोगो का ध्यान अपनी ओर खिंचा है. इसी कड़ी में मलयालम सिनेमा की फिल्म ” Aadujeevitham ” ( द गोट लाइफ ) भी आई है. जो की एक सर्वाइवल ड्रामा फिल्म है. साल 2008 में आये मलयालम उपन्यास ” aadujeevitham ” उपन्यास पर आधारित यह फिल्म एक सर्वाइवल ड्रामा फिल्म है. यह कहानी है एक ऐसे इंसान के बारे में जो सऊदी अरब नौकरी के लिए जाता है. मगर वहां सुनसान बंजर रेगिस्तान के बीच कैद कर लिया जाता है. जहाँ उसे जीना भी है. साथ ही वहां से जिंदा बचकर वापस अपने देश भी आना है.
तो दोस्तों ” द गोट लाइफ ” एक जबरदस्त फिल्म है. इस फिल्म की कहानी, इसकी उम्दा सिनेमेटोग्राफी, ऐ.आर.रहमान साहब का संगीत, रसूल पूकूत्टी की साउंड डिजाइनिंग, पृथ्वीराज का जबरदस्त अभिनय और ब्लेसी का शानदार विज़न मिलकर इसे साल की बेहतरीन फिल्मों में से एक बनाते है. साथ ही यह लाइफ ऑफ़ पाई और कास्ट अवे जैसी गजब की सर्वाइवल ड्रामा फिल्मों की लिस्ट में शामिल हो जाती है. बनती और टूटती उम्मीदे, हिम्मत हारते मन से लड़ते हुए किस तरह फिल्म का हीरो अपनी हारी हुई जिंदगी में सर्वाइव कर पाता है. गोट लाइफ ऐसी ही फिल्म का एक शानदार उदाहरन है. साथ ही यह भारत की आज तक की बनी सबसे बेस्ट सर्वाइवल ड्रामा फिल्म भी कहलाई जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं है.
तो आखिर दोस्तों पृथ्वीराज की ” द गोट लाइफ ” फिल्म कैसे एक बेहतरीन फिल्म बनी आइये उन्हीं पांच बिन्दुओं पर हम बात करते है इस आर्टिकल में.
The Goat Life movie review in hindi
” Aadujeevitham ” दिल को छु लेने वाली सर्वाइवल कहानी
पृथ्वीराज ने इस फिल्म में नजीम नाम के मलयाली अप्रवासी मजदूर का किरदार निभाया है. जो अपने साथी हाकिम के साथ सऊदी अरब आता है नौकरी करने के लिए. मगर जहाँ वो काम करने के लिए आये थे वहां जाने के बजाय वो शहर से दूर कहीं दूर बंजर रेगिस्तान में किसी अरेबियन आदमी के घर गुलाम बनकर रहने लगते है. जहाँ ना पर्याप्त पानी है, ना ही ढंग का भोजन. नजीम की ज़िन्दगी वहां की भेड़ बकरियों की तरह बन जाती है. उसका वजन घट जाता है. पेरो में छाले पड़ जाते है. उसकी आवाज लडखडाने लगती है. फटे पुराने कपडे पहनने लगता है. उसे लगता है अब यही उसकी ज़िन्दगी का सार है. उसे लगता है यहीं पर उसकी बाकी की ज़िन्दगी बीतेगी.
मगर कहते है ना हर बारिश की बूँद के साथ सुनहरे मौसम की उम्मीद आती है. नजीम को भी उम्मीद जगती है की वो यहाँ से जिंदा बचकर अपने देश, अपनी पत्नी और अपनी माँ के पास जा सकता है. द गोट लाइफ फिल्म की कहानी में कई बार फिल्म के मुख्य किरदार की उम्मीदे बनती है. फिर टूटती है. कभी मन हारने लगता है. कभी पैर लड़खड़ाने लगते है. मगर घर जाने की उम्मीद उसे जिंदा रखती है.
फिल्म के डायरेक्टर ब्लेसी ने इस कहानी को किताब से विशुअल माध्यम में बदला और स्क्रीनप्ले के रूप में ढाला है. फिल्म की कहानी में नजीम जब शुरुआत में उस रेगिस्तान वाली जगह फस जाता है. तब उसे अपने घर, अपने गाँव में पत्नी और वहां के लोगो के साथ बिताये पल याद आते है. मगर जैसे जैसे समय बीतता जाता है. उसकी यादों में से ये पल गायब होने लगते है. जो की दिखाता है की समय के साथ सब कुछ ओझल हो जाता है.
द गोट लाइफ फिल्म की कहानी कई बार आपके दिल को छूती है. कई बार आप नजीम की परेशानी में शामिल हो जाते हो. उसके इमोशन से जुड़ जाते हो. यह फिल्म तीन घंटे लम्बी है. इसका स्क्रीनप्ले कहानी को तेजी से भगाता नहीं है. बल्कि वो टेहराव के साथ उस माहौल में आपको शामिल करता है.
पृथ्वीराज सुकुमारन का कमाल अभिनय
आखिर बार मैंने पृथ्वीराज सुकुमारन को ” सालार ” फिल्म में देखा था. वहां वो एक्शन करते दिखाई दिए थे. मगर इस फिल्म में उनका किरदार भोला सा है. जो गाँव में रहा है. उसे दुनियादारी का ज्ञान नहीं है. जो अपनी माँ और पत्नी के साथ रहता है. जिसे मलयाली भाषा के अलावा की दूसरी भाषा ठीक से नहीं आती. इसी कारण वो अपने गाँव, शहर, देश से दूर सऊदी के किसी रेगिस्तान में भीड़ बकरियों की तरह रह रहा है. इस किरदार को जिस तरह से लिखा गया है. ठीक उसी तरह सी पृथ्वीराज सुकुमारन ने इसे निभाया है.
वैसे देखा जाए तो अक्सर सर्वाइवल वाली फिल्मों में मुख्य किरदार के पास अपनी एक्टिंग स्किल्स दिखाने का भरपूर मौका मिलता है. जैसे लाइफ ऑफ़ पाई में सूरज शर्मा ने ” पाई ” का किरदार निभाया था, जैसे कास्ट अवे फिल्म में टॉम हंक्स ने अपनी एक्टिंग स्किल्स से उस किरदार को बेहतरीन बना दिया था, जैसे 127 hours फिल्म में जेम्स फ्रंको ने एरोन के किरदार को उसके पूरे पोटेंशियल से निभाया था. ठीक उसी तरह पृथ्वीराज ने इस अवसर को जाने नहीं दिया. इस किरदार को उसके सबसे बेस्ट तरीके से निभाकर पृथ्वीराज सुकुमारन ने खुद को टॉम हेंक्स जैसे बड़े एक्टर्स की लिस्ट में शामिल कर लिया है. मेरे अनुसार भारतीय सिनेमा में इनसे पहले रणदीप हूडा ने खुद को इस तरह परिवर्तित किया था.
चाहे इमोशनस दिखाने हो, चाहे किरदार में शारीरिक रूप से बदलाव करना हो, चाहे अंत के उन दर्शयो को गजब तरीके से निभाना जब नजीम का किरदार ठीक से बोलना तक भूल जाता है, जैसे सारे अवसर को पृथ्वीराज सुकुमारन ने भुनाया है. इस किरदार
पृथ्वीराज के अलावा फिल्म में हकीम का किरदार निभाने वाले एक्टर के.आर. गोकुल ने भी गजब का अभिनय किया है. साथ ही नजीम की पत्नी के रूप में अमाला पॉल ने भी अच्छा अभिनय किया है.
सिनेमेटोग्राफी
आडूजीवथम फिल्म है एक ऐसे इंसान के बारेमें जो सऊदी अरब गया तो था यह सोचकर की वहां बड़े शहर, आलीशान इमारतो के बीच काम करने का मौका मिलेगा. मगर सुनसान, बंजर रेगिस्तान में कहीं दूर किस का गुलाम बनकर काम करना पड़ जाता है ऐसा उसने कभी नही सोचा था. इसी कारण इस फिल्म में जितना मुख्य किरदार फिल्म में कलाकारों का है. उतना ही मुख्य किरदार इस फिल्म में वहां के रेगिस्तान का भी है. ऐसा रेगिस्तान जहाँ दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं देता. ऐसा रेगिस्तान जिसका अंत मालूम नहीं है. जहाँ तक देखो सिर्फ रेत ही रेत.
जहाँ सिर्फ नजीम है. उसकी बकरियां और ऊँट है. साथ ही गिद्ध है. जो वहां रेगिस्तान में लोगो के मरने का इंतेजार करते है. कब वो इंसान मरे. कब उनकी दावत हो. द गोट लाइफ में सुनील के.एस की बहुत ही उम्दा सिनेमेटोग्राफी इसे बेहतरीन तरीके से हमारे सामने प्रस्तुत करती है. जिस तरह यह तीन घंटे लम्बी फिल्म दौड़ती नहीं मगर टेहराव के साथ आपको उस माहौल में शामिल होने के लिए प्रयाप्त समय देती है. उसी तरह सुनील के.एस की सिनेमेटोग्राफी में भी एक तरह का ठहराव दिखाई देता है. जो हमें उस रेगिस्तान के डरावने सच से सामना करवाता है.
भले ही कुछ जगह एस्थेटिक के चक्कर में कुछ विसुअल्स थोड़े बचकाने लगते है. मगर पूरी फिल्म में जिस तरह से विसुअल्स दिखाए गए है वो आपकी आँखों को अचंभित कर देंगे. चाहे रेगिस्तान को विसुअल्ली भयानक और विशाल दिखाना हो, चाहे उसके बिलकुल विपरीत केरला के खुबसूरत बारिश में भीगते गाँव दिखाना हो, जैसे कई विसुअल्स आपको फिल्म के परफेक्ट होने का उदहारण देते है. हॉलीवुड की मशहूर फिल्म ” लॉरेंस ऑफ़ अरेबिया ” की सिनेमेटोग्राफी के लेवल का काम है इस फिल्म में.
रहमान साहब का संगीत
अगर आप थोडा भी सिनेमा देखते होंगे तो आपको पता होगा की रहमान साहब कई बार गाना गाने में उनकी एक गायन स्टाइल काम में लेते है. जिसमे वो एक अलाप लेते है. जैसे गुरु फिल्म के गाने ” तेरे बिना ” के मध्य में उनका एक अलग सा स्वर आता है जो सुनने में बहुत ही मधुर लगता है. वो ही स्वर या सुर ( माफ़ कीजियेगा संगीत का इतना ज्ञान नहीं है ) इस फिल्म में हमें मध्य में सुनाई देता है. वो इस फिल्म के उस दर्शय और उस माहौल के साथ एक दम फिट बैठता है.
उदहारण के लिए नीचे Youtube का एक विडियो लिंक कर रहा हूँ. जिससे आप समझ जाओगे मैं क्या कहना चाह रहा हूँ.
तो दोस्तों रहमान साहब के म्यूजिक से हम सब वाकिफ है. और यही कमाल उन्होंने इस फिल्म में भी किया है. फिल्म के शुरुआत में जहाँ हम रोमांटिक मधुर संगीत सुनने को मिलता है. तो फिल्म के सेकंड पार्ट में हमें सर्वाइवल के माहौल के साथ सटीक बैठते हुए गाने सुनाई देते है.
साथ ही इस फिल्म में जिस तरह बैकग्राउंड और साउंड मिक्सिंग का इस्तेमाल हुआ है वो भी काबिल ऐ तारीफ है. रेत के टीलो से खिसकती रेत की आवाज, खुले रेगिस्तान में बहती हवा की धून, कहते है न की कभी कभी साइलेंस में ही सबसे ज्यादा शोर होता है, वहीँ साइलेंस का शोर जैसे साउंड के लिए कमाल काम किया है रसूल पुक्कुट्टी नें.
ब्लेसी का 16 साल पुराना सफल विज़न
16 साल बहुत लम्बा समय होता है. कई बार आपके चारो और माहौल बदल चुका होता है. आपकी सोच भी बदल चुकी होती है. ब्लेसी ने जो विज़न शायद उस समय इस फिल्म का सोचा होगा वो विज़न इस फिल्म में नही होगा. मेरे अनुसार अगर ब्लेसी का विज़न बदला है तो पुराना विज़न इस विज़न से तो कमतर ही होगा. क्योकि यह फिल्म जिस तरह से बनी है. वो कमाल है. और अगर उन्होंने जैसा 16 साल पहले जैसा सोचा होगा वैसा ही विज़न उन्होंने बनाये रखा तो उसके लिए अलग से तारीफ होनी चाहिए.
इस फिल्म को बनने में ही करीब 8 साल लग गए. यह फिल्म करीब करीब 2018 में बनना शुरू हुई थी. जिस बीच कोरोना भी आया. शूटिंग भी रुकी. फिल्म की टीम शूटिंग लोकेशन पर ही करीब एक महीने फसी रही. और भारत के लॉकडाउन में फसे लोगो को देश में लाने की योजना के तहत वो वापस अपने देश आ सके. मगर फिर भी ब्लेसी ने अपने विज़न पर यकीन रखा. क्योकि आज की इस तीज रफ़्तार, रील्स की दुनिया में लोगो का अटेंशन टाइम कम हो चुका है. मगर फिर भी ब्लेसी ने एक ऐसी फिल्म बनाई जिसमे हीरो एक्शन करता दिखाई नहीं देता. ऐसी फिल्म जिसमे दुःख है, पीड़ा है, सूनापन है. ऐसी फिल्म जो करीब तीन घंटे लम्बी फिल्म है. मगर बात वही है की अगर आपका क्राफ्ट मजबूत और इमानदार हो तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता.
ब्लेसी को अपने क्राफ्ट भरोसा ही होगा तब ही उन्होंने इसके स्क्रीनप्ले में फ़ालतू की कॉमेडी या कोई बेवजह का एक्शन नहीं रखा. क्योकि अक्सर बॉलीवुड के साथ यह होता है. इसका एक बड़ा उदाहरन है ” डंकी ” फिल्म.
दोस्तों मैं कहना चाहूँगा की पिछले साल आई शाहरुख़ खान की फिल्म ” डंकी ” से मुझे कुछ इसी तरह की फिल्म की उम्मीद थी. जिसमे हीरो नहीं किरदार होता. जिसमे डंकी ( मतलब एक देश से दुसरे देश गेरकानूनी तरीके से जाने के तरीका ) के समय आने वाली परेशानियों को समय लेकर दिखाया जाता ना की उसे सिर्फ एक गाने के माध्यम से दिखाया जाता.
खेर इस फिल्म की बात करे तो यह भारतीय सिनेमा की मास्टरपीस फिल्म है. कैसे एक सर्वाइवलफिल्म बनाई जाती है इससे सिखा जा सकता है. इसके लिए फिल्म के निर्देशक ब्लेसी की जितनी तारीफ़ की जाये कम ही है.
ओवरआल रिव्यु ऑफ़ ” The Goat Life “
यह फिल्म ठीक वैसी ही जैसे मैंने इसके बारे में सोचा था. ठीक उसी तरह है जैसे एक सर्वाइवल फिल्म को होना चाहिए. ” द गोट लाइफ ” सही में इस साल आई सभी फिल्मों में सबसे बेस्ट फिल्म है. सही मायने में यह एक ” G.O.A.T ( GREATES OF ALL TIME )” फिल्म है. जिसमे कहानी आपको बोर नहीं होने देती. जिसमे एक्टर अपने जीवन की सबसे एक्टिंग करता दिखाई देता है. जिसमे म्यूजिक उस कहानी के माहौल के साथ बहता रहता है. तो दोस्तों मेरे लिए यह फिल्म इस साल की अब तक की सबसे बेस्ट फिल्म है.
अगर आपने ” द गोट लाइफ ” नहीं देखी. तो आप इसे नेट्फ्लिक्स पर देख सकते है. आपको बताएगी की जो आप पाना चाहते हो. जिसका आप सपना देख रहे हो उसे प्राप्त करने के लिए क्या आप गँवा रहे हो. वो जरुर ध्यान रखे. क्योकि कई बार हम उन चीजों की कदर नहीं करते जो हमारे पास होती है बल्कि उन चीजों के सपने देखते है जो हमारे पास नहीं है.
साथ ही दूसरे देश में भले ही आप कितना कमा लो. कैसे ही रह लो. अपना देश अपना ही होता है. बहुत ही बेहतरीन अद्भुत फिल्म.