Bawaal movie review : एक औसत सी लव स्टोरी को वर्ल्ड वार 2 के साथ जोड़कर एक मजबूत फिल्म बनाने की नाकाम कोशिश.

जब बवाल फिल्म का टीज़र आया था तब ज्यादा लोगो को इसकी जानकारी नही थी. मगर टीज़र देखकर लोगो को लगा की इस फिल्म का वर्ल्ड वॉर 2 में हुए होलोकास्ट से कुछ जुडाव है तो यह फिल्म शायद कुछ अलग होगी. मगर जब इसका ट्रेलर लांच हुआ तब लोगो को पता चल गया था की नितेश तिवारी एक लव स्टोरी को वर्ल्ड वॉर 2 की घटनाओं के साथ जोड़कर कहानी को मजबूत बनाने की चेष्ठा कर रहे है. हाल ही में यह फिल्म अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हो गयी है. और फिल्म देखने के बाद मेरा नितेश तिवारी से बवाल को लेकर यही सवाल है की आखिर क्यों ?

ऐसी क्या मज़बूरी आन पड़ी थी इस कहानी पर फिल्म बनाने की. बहुत ही साधारण फिल्म को वर्ल्ड वॉर 2 से जोड़कर कुछ नया बनाने की यह उनकी नाकाम कोशिश है.

तो दोस्तों आइये जानते है की Bawaal फिल्म आखिर अच्छी है तो कितनी अच्छी है. और बुरी है तो कितनी बुरी है.

Bawaal movie review

कहानी/ स्क्रीनप्ले

Bawaal फिल्म की कहानी है अजय उर्फ़ अज्जू भैया के बारे में. जो की उत्तरप्रदेश के लखनऊ शहर में रहते है. उनका काम है अपने शहर, समाज में झूटी इमेज बनाकर भोकाल काटना और साथ ही वो स्कूल में टीचर है. इसी भोकाली के चक्कर में उनकी शादी होती है निशा से . जो खुबसूरत है. पढ़ी लिखी है. अच्छे सभ्य परिवार से है. मगर उसे मिर्गी के दौरे पड़ते है. और अज्जू भईया को निशा की इसी बीमारी से तकलीफ है. और इसी कारण वो निशा से दुरी बना लेता है. मगर जब वो स्कूल से ससपेंड होने के बाद बच्चो को वर्ल्ड वार 2 का बाकी बचा कोर्स पूरा करवाने के लिए अपनी पत्नी के साथ यूरोप के टूर पर जाता है तो WW2 में हुई घटनाओं से सीख लेते हुए उसे अपनी गलतियों का एहसास होने लगता है. और उसका निशा के प्रति प्यार बढ़ने लगता है.

बवाल फिल्म की कहानी नितेश तिवारी ने लिखी है पियूष गुप्ता, श्रेयस जैन और निखिल मल्होत्रा के साथ मिलकर. अगर उपरी स्तर पर देखा जाए तो फिल्म की कहानी टिपिकल बॉलीवुड रोमांटिक स्टोरी जैसी है. जिसमे वर्ल्ड वॉर 2 का फ्लेवर मिलाया हुआ है. फिल्म में जिस तरह से वर्ल्ड वॉर 2 को Metaphorically इस्तेमाल करते हुए एक पति पत्नी के बीच की दुरी को प्यार में बदलते हुए दिखाया है वो कहानी के लेवल पर अच्छा है मगर स्क्रीनप्ले के स्तर पर देखा जाए तो बहुत कमजोर है.

फिल्म शुरुआत के 15 मिनट अच्छी लगती है मगर जब धीरे धीरे स्क्रीनप्ले आगे बढ़ने लगता है तो फिल्म पकड़ छोड़ने लगती है. ना कोई कहानी में ग्रिप है, ना कहानी में एक बेहतरीन लेवल का ड्रामा, है तो सिर्फ वरुण धवन और जहान्वी कपूर की ओवरएक्टिंग.

एक्टिंग

वरुण धवन Basically इस फिल्म में अज्जू भैया के किरदार में वरुण धवन ही बने है. उनके उत्तरप्रदेश वाला एक्सेंट. उनके चलने का वही स्टाइल जो उनकी कई सारी मासी फिल्मो में दिखाई देता है. अज्जू भैया एक बिगडेल लड़का और निशा एक समझदार मगर भोली लड़की. और फिर एक यूरोप की ट्रिप और वर्ल्ड वॉर 2 की घटनाओं से सबक लेते हुए अज्जू भैया के व्यक्तित्व में बदलाब लाती हुई निशा भाभी.

ऐसा लगता है जैसे आज के दौर की गोविंदा और करिश्मा कपूर की कोई फिल्म. बस इस फिल्म में एक ऐसा गाना मिस हो रहा था जहा दोनों हीरो हेरोइन बीच सड़क पर नाच रहे होते और गोर लोग उन्हें देख रहे होते.

वरुण धवन वेसे अच्छे एक्टर है. उन्होंने बदलापुर, अक्टूबर, भेड़िया जैसी शानदार फिल्मो में काम किया है. मगर वो कुली नंबर 1 जैसी फिल्मो में भी काम कर चुके है. शायद बवाल फिल्म भले ही कुली नंबर 1 वाली श्रेणी में नही आती मगर इस फिल्म में वरुण धवन का किरदार और उनकी एक्टिंग जरुर इगोनोर करने लायक है.

वही अज्जू भैया की पत्नी निशा के किरदार में जहान्वी कपूर का काम भी बहुत ही एवरेज है. उनका बोलने का तरीका बिलकुल भी नही लगता है की वो किसी छोटे शहर की लड़की हो. एक्टर जितना बोली से एक्टिंग करता है उतना ही वो चेहरे से भी करता है मगर जहान्वी कपूर के केस में दोनों की गायब थे.

मनोज पहावा ने अज्जू भैया के पिता का किरदार निभाया है. एक पिता का टिपिकल किरदार. और मनोज पाहवा की अच्छी एक्टिंग भी इस किरदार को प्रभावी नही बना पाई. क्योकि जिस तरह यह कहानी ही टिपिकल थी. वेसे ही इस कहानी में लिखे गए किरदार भी औसत थे.

अंजुमन सक्सेना ने अज्जू की माँ के किरदार में अच्छा काम किया है. मगर बात फिर वही है की किरदार इतने औसत लिखे गए है की बेहतरीन कलाकार चाह कर भी किरदारों को प्रभावी नही बना पाए.

इनके अलावा फिल्म में मुकेश तिवारी, प्रतीक पचोरी, व्यास हेमांग, शशि वर्मा ने ठीक ठाक सा काम किया है.

तो कहने की बात यह है की जितनी फिल्म की कहानी औसत थी. उतने ही कमजोर इसके किरदारों की लिखाई है.

म्यूजिक

बवाल फिल्म में तीन गाने है.

पहला गाना है ” तुम्हे कितना प्यार करते ” जिसमे मिथुन का टिपिकल संगीत और अरिजीत सिंह के लिए एक और टिपिकल रोमांटिक गाना है. जो फ़िल्म ख़तम होने तक याद भी नहीं रहता.

बवाल फ़िल्म का दूसरा गाना है ” दिल से दिल तक “. एक और टिपिकल ना याद रखा जाने वाला गाना. जिसमे संगीत दिया है आकाशदीप सेनगुप्ता ने. और गाया है लक्ष्य कपूर और सुवरना तिवारी ने. बेहद औसत गाना.

इसका तीसरा गाना है ” दिलों की ये डोरियान ” जिसमे संगीत दिया है लीजेंड तनिष्का बाग़ची ने. और गाया है विशाल मिश्रा ने.विशाल मिश्रा वही जिन्होंने फ़िल्म कबीर सिंह का खूबसूरत गाना ” कैसे हुआ ” गाया था. वैसे यह गाना बाकी दो गानो से थोड़ा अच्छा है. सुनने लायक है. शादी पार्टी टाइप गाना है.

तो ओवरआल बवाल फ़िल्म में संगीत का डिपार्टमेंट कमजोर ही है.

अन्य बिंदु

बाकी फ़िल्म टुकड़ो में ठीक ठाक सी लगती है. यूरिप टूर में और भी बहुत कुछ खूबसूरत दिखाया जा सकता था. उसी तरह फ़िल्म का क्लाइमेक्स औसत है. वरुण को ज़िद्दी, बिगड़ैल इंसान से अच्छे सज्जन इंसान में बदलते में दिखाया ड्रामा कमजोर लगता है. नितेश तिवारी का निर्देशन कमजोर है. फिल्म कई जगह इसके बेसिक लेवल पर कमजोर है. साथ ही फिल्म में एक सीन है जिसमे अज्जू भैया और निशा उनके घर की छत पर खड़े रहते है और वहां से दूर कहीं पहाड़ दिखाई देता रहता है. समझ नही आ रहा लखनऊ में कौनसा पहाड़ आ गया ऐसा.

ओवरआल review – Bawal

अरे नहीं है यार यह अच्छी फ़िल्म. टिपिकल बॉलीवुड ढरे पर चलती यह फ़िल्म वार को मेटाफॉर के रूप में दिखा कर कुछ नया करना चाह रही थी. मगर कमजोर कहानी, कमजोर स्क्रीनप्ले के कारण यह एक औसत से भी कम दर्जे की फ़िल्म बनकर रह जाती है.

फ़िल्म Amazon Prime पर उपलब्ध है. देखना चाहो तो देख लो वरना पैसा और समय है तो पिछले हफ्ते आई Netflix की नई सीरीज ” Kohrra ” एक बेहतरीन ऑप्शन है.

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