ब्लैक वारंट नेटफ्लिक्स सीरीज समीक्षा : यह बात ध्यान में रख लो दोस्तों जब तक बॉलीवुड में विक्रमाद्वितीय मोटवानी जैसे दिग्गज फ़िल्ममेकर है, बॉलीवुड को कोई नहीं मार सकता. बॉलीवुड आज भी ज़िंदा है, पहले भी ज़िंदा था और आगे भी ज़िंदा रहेगा.
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस समयकाल में बॉलीवुड के दिन कुछ ख़ास अच्छे नहीं चल रहे है. वहीँ साउथ की फिल्मों ने बॉलीवुड को पछाड़ दिया, ऐसा सुनने को मिल रहा है. और काफी हद तक यह सही भी है. क्योंकि बॉलीवुड इसलिए मात खा रहा है क्योंकि उनका कुछ अपना ओरिजिनल रह नहीं गया है. साउथ की फिल्मों की रीमेक बनाते है, तो कोई हॉलीवुड फ़िल्म से इंस्पिरेशन लेकर फ़िल्म बनाते है. या फिर भूल-भूलिया 3 की तरह सिर्फ मोटी कमाई के लिए फ़िल्म बना रहे है. इसलिए साल 2024 मेरे अनुसार बॉलीवुड के लिए सबसे खराब और मनहूस साल रहा है. जिसके ऊपर मैंने एक आर्टिकल भी लिखा है जिसे आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते है.
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और ऐसी बात नहीं है की बॉलीवुड में अच्छे लेखक और अच्छे फ़िल्म क्रिएटर्स नहीं बचे है. अगर नहीं बचते तो नेटफ्लिक्स की ताज़ा सीरीज ” ब्लैक वारंट ” नहीं आती. जिसकी कहानी जितनी दमदार है, उससे कहीं ज्यादा इस सीरीज की बनावट दमदार है. चाहे वो संवाद हो, कलाकारों की धाँसू एक्टिंग हो, म्यूजिक हो या मोटवानी साहब का उम्दा निर्देशन हो, सभी चीज़े जो एक फ़िल्म या सीरीज को बेहतरीन बनाते है, वो इस सीरीज में आपको देखने को मिलेगा.
तो दोस्तों आइये बात करते है नेटफ्लिक्स की नई क्राइम थ्रीलर सीरीज ” ब्लैक वारंट ” के बारे में. क्योंकि इस सीरीज की बात करना जरुरी है. जितना ज्यादा इस उम्दा सिनेमा की बात होंगी. यह बात उन तक पहुंचेगी जो सोचते है की बॉलीवुड का पतन हो रहा है.

ब्लैक वारंट नेटफ्लिक्स सीरीज समीक्षा
ब्लैक वारंट का मतलब होता है की जब किसी मुजरिम को फांसी की सजा सुनाई जाती है तब ब्लैक वारंट जारी किया जाता है. तो यह सीरीज तिहाड़ जेल के अंदर की दुनिया दिखाते हुए अलग अलग मुजरिम को 1985 तक दी गयी फांसी की सजा को कहानी के माध्यम से बताती है. जिसमे आपको तिहाड़ जेल कर अंदर की राजनीति, प्रशासन, वहां काम कर रहे लोगो की दुनिया से रूबरू करवाया जाता है. यह सीरीज साल 2019 में आई किताब ” ब्लैक वारंट : कॉन्फेशन ऑफ़ तिहार जेलर ” पर आधारित है. जिसे सुनील गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी ने लिखा था.
ब्लैक वारंट सीरीज की कहानी मुख़्ता सीरीज के चार किरदारों Asp सुनील कुमार गुप्ता ( ज़ेहन कपूर ), DSP राजेश तोमर ( राहुल भट्ट ), Asp शिवराज सिंह मंगत ( परमवीर चीमा ) और ASP धईया (अनुराग ठाकुर ) के माध्यम से दिखाई जाती है. इस सीरीज में तिहाड़ के अंदर की राजनीति, अलग अलग मुजरिमो की कहानी, वहां काम कर रहे है लोगो की प्रभावित होती ज़िन्दगी को इस सीरीज में यथार्थ रूप में दिखाया गया है.

चाहे वो जेल के अंदर की दुनिया दिखाना हो, 1985 के आसपास के समयकाल में चीज़े कैसी दिखती थी मतलब की लोगो की वेशभूसा, उनकी बोली, उस समयकाल की गाड़ियां और भी कई चीज़े इतने बारीक़ तरीके से दिखाई गयी है की आप इसके क्रिएटर्स की तारीफ करते नहीं रुकोगे. साथ ही इसमें देश की पहली फांसी, जो की रंगा और बिल्ला को दी गयी थी, उसको बड़े जबरदस्त तरीके से दिखाया गया है.
इस सीरीज के क्रिएटर्स में मुख़्ता विक्रमाद्वितीय मोटवानी और सत्याशु सिंह है.. मोटवानी साहब के बारे में आप नहीं जानते तो आप सिनेमा ही नहीं जानते. ये वही फिल्मेमेकर है जिन्होंने बॉलीवुड को उड़ान, लूटेरा, Trapped और सेक्रेड गेम्स जैसी फ़िल्में/वेबसीरीज प्रदान करी है.
और यह बात तो निश्चित है की विक्रमाद्वितीय मोटवानी कुछ बनाये और उसकी तारीफ नहीं हो. ऐसा हो ही नहीं सकता. यही कारण है की ” ब्लैक वारंट ” इतनी गजब सीरीज है की उसके शुरूआती दो एपिसोड तो आपको हिलाकर रख देंगे. दूसरे एपिसोड में फांसी वाला दर्शय सिनेमा क्रिएटिविटी का अद्धभुत उदाहरण है.
मगर ऐसा नहीं है ब्लैक वारंट विक्रमाद्वितीय मोटवानी की बेस्ट क्रिएटिविटी है. मगर यह एक उम्दा सीरीज है. यह मोटवानी साहब की बेस्ट क्रिएटिविटी हो सकती थी अगर इसके शुरूआती दो तगड़े एपिसोड के बाद के एपिसोड धीमे नहीं होते तो. शुरूआती दो एपिसोड के बाद आगे तीन एपिसोड धीमे हो जाते है. ऐसा लगता है कहानी में बताने को कुछ है नहीं. मगर फिर भी ब्लैक वारंट सीरीज है जिसे आपको जरूर देखना चाहिए.
यह सीरीज अपने आपमें एक सिनेमा की क्लास है. जिससे आप सीख सकते हो की कैसे अच्छा सिनेमा बनाया का सकता है. और दोस्तों मैं बता दूँ की अच्छा सिनेमा वही लोग बना सकते है जो अच्छा सिनेमा देखते है. वरना तो बॉलीवुड में ऐसे बथेरे फ़िल्ममेकर्स है जो या तो रीमेक फ़िल्म बनाते है, या वही पुराने फॉर्मूले पर फ़िल्म या सीरीज बनाते है जो बॉलीवुड को गर्त में ले डूबा है.
इस सीरीज की खासियत है इसके किरदारों को जिस तरह से एक्टर्स ने निभाया है वो काबिले तारीफ है. चाहे मुख्य किरदार में ज़ेहन कपूर हो, राहुल भट्ट हो या छोटे छोटे किरदार में भी जो लोग दिखाई देते है उन सभी ने बहुत ही गजब का अभिनय किया है. आज के इस दौर में हमें शुक्रगुजार होना चाहिए की अब बॉलीवुड में एक्टरस लिए जाते है, ना की हीरो. क्योकि इस तरह की सीरीज या फिल्में हीरो की वजह से नहीं, अच्छे एक्टर और अच्छी क्रिएटिविटी की वजह से चलती है.

इस सीरीज की लिखाई की भी तारीफ करनी चाहिए की इसमें किरदारों को सिर्फ ब्लैक-वाइट के नजरिये में नही ढाला गया, बल्कि उनकी कुछ अच्छी बाते और कुछ बुरी बातें भी दिखाई गयी है. जो किरदार शुरुआत में आपको बुरे लगेंगे वो अंत तक आपको पसंद आने लगेंगे. और यह सब इसके स्क्रीनप्ले और कहानी की बदोलत है. जो किरदारों को ढलने में भरपूर मदद करती है. इस सीरीज के मुख्य राइटरस में सत्यांशु सिंह, जो बॉलीवुड में अच्छे खासे प्रचलित है अपनी समझदार राइटिंग के लिए, विक्रमादित्य मोटवानी और अर्केश अजय. फिर भी मुझे समझ नही आता की बॉलीवुड में क्यों फिल्में रीमेक या घटिया फूहड़ बनाई जाती है, जबकि देखने जाओ तो सत्यांशु सिंह जैसे बहुत से ऐसे बेहतरीन लेखक मोजूद है जो एक मौके की तलाश में है.
तो दोस्तों अगर आपको भी कोई कहे की बॉलीवुड बर्बाद हो रहा है, तो उन्हें ब्लैक वारंट जैसी शानदार सीरीज जरूर दिखाए. अगर वो देख पाए तो समझ जाएंगे. नहीं देख पाए तो गलती बॉलीवुड फ़िल्ममेकर्स की नहीं है ऐसी ढक्कन ऑडियंस की है. जिन्हे वही सड़ी गली फ़िल्में पसंद आती है जिनमे भूल-भूलेया, सिंघम अगेन, पुष्पा 2 जैसी फ़िल्में आती है.
तो दोस्तों अच्छा सिनेमा देखो. सोच का दायरा बढ़ाओ. आपसे सिनेमा है. आप सिनेमा से नहीं. अगर अच्छा सिनेमा देखोगे तो मोटवानी, सत्याशु सिंह जैसे क्रिएटर्स को प्रोत्साहन मिलेगा. जिससे हमें बॉलीवुड में अच्छी फ़िल्में या सीरीज देखने को मिलेगी.