Raj & Dk कई बेहतरीन फिल्मे जैसे 99, शोर इन द सिटी, गो गोवा गॉन, जेंटलमैन बना चुके है. साथ ही उनकी वेब सीरीज की श्रेणी में A Family Man, Farzi और हाल ही में नेट्फ्लिक्स पर रिलीज़ हुई ” गन्स एंड गुलाब्स ” आती है. बहुत सारे किरदार, किरदारों का बेहतरीन लेखन और कॉमेडी उनके सिनेमा की खास बात है. उनकी फिल्मो/वेबसीरीज में एक्शन, स्टोरी के साथ साथ मजेदार कॉमेडी भी रहती है जो उनकी फिल्मो/वेबसीरीज को देखने लायक बनाती है. और यही चीज़ एक बार फिर से काम कर जाती है उनकी नई netflix सीरीज ” Guns & Gulaabs” में.
तो आइये जानते है ” Guns & Gulaabs review ” में की राज एंड डीके की यह सीरीज क्या वाकई में एक देखने लायक सीरीज है या इस बार उनसे चूक हो गयी.
Guns and Gulaabs review
Guns and Gulaabs की कहानी
Guns & Gulaabs की कहानी Raj & Dk ने सुमन कुमार के साथ के साथ मिलकर लिखी है. इनकी पिछली वेब सीरीज के लेखन में भी सुमन कुमार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. Guns & Gulaabs की कहानी है एक छोटे से शहर गुलाबगंज की . जहां अफीम की खेती की जाती है. कई किसान सरकार के साथ मिलकर यह खेती करते है तो कई अवेध तरीके से. गन्स एंड गुलाबस उन्ही अफीम के अवेध व्यापारियों और गैंग्स के इर्द गिर्द घूमती है.
जहां एक ओर गांची ( सतीश कौशिक ) जो अफीम का व्यापर करने वाले बड़े गैंगस्टर है. वहीँ दूसरी ओर उनका दुश्मन, उनका कॉम्पिटिटर, उनका पुराना सहायक नवीद. जो गांची को हराने के लिए कई सारे हथकंडे अपनाता रहता है. और इसीलिए वो मुंबई से एक सुपारी किलर 4 कट आत्माराम को बुलाता है. और उसके द्वारा बाबू टाइगर की हत्या करवा देता है.
इसी बीच गांची अफीम की बड़ी सौदेबाजी करने वाला होता है. मगर उसके सामने नवीद, शहर में आया नया नारकोटिक्स ऑफिसर अर्जुन वर्मा जैसी परेशानियां है. साथ ही इस कहानी में दूसरी ओर पाना टीपू है जो अपने दोस्त की हत्या का बदला लेना चाहता है ( हाँ और अपने बाप की मौत का भी ). मगर अक्सर उसका ध्यान भटकता रहता है अपने प्यार चंद्रलेखा की ओर. तो कैसे आखिर यह बड़ी डील सफल होती है. कैसे अर्जुन वर्मा इस अफीम के अवेध व्यापार को ख़तम करता है और कैसे पाना टीपू अपने दोस्त ( और हाँ अपने बाप ) का बदला लेता है यही Guns & Gulaabs की कहानी का सारांश है.
Guns & Gulaabs की कहानी मजेदार है. इसका स्क्रीनप्ले मजेदार डायलॉगस, एक्शन, थ्रिल से भरा हुआ है की आप कहीं भी बोरियत महसूस नही करते. इसका पूरा श्रेय इसके लेखको को जाना चाहिए. क्योकि जिस तरह सीरीज में बहुत सारे किरदार, उन किरदारों की कहानी और सबका अंत में एक साथ मिल जाना बहुत सही तरीके से दिखाया गया है वो एक मजबूत लेखन का ही कमाल होता है.
हालाकि Guns & Gulaabs तीसरे एपिसोड के बाद कहीं कहीं स्लो होने लगती है मगर यही राज एंड डीके के सिनेमा की खासियत है की वो किरदारों को पकाने में भरपूर समय लेते है. और आपको भी पता है मटन जितना ज्यादा धीमी आंच पर पकेगा उतना स्वादिष्ट बनेगा.
Guns and Gulaabs का स्क्रीनप्ले
किसी भी फिल्म/सीरीज में कहानी होती है मगर उस कहानी को किस तरह दिखाया जाएगा, एक दर्शय के बाद कौनसा दर्शय आएगा यह काम होता है स्क्रीनप्ले लेखक का. और Guns & Gulaabs में स्क्रीनप्ले लिखा है कुनाल मेहता ने. उनका स्क्रीनप्ले बड़ा मजेदार है. जहां एक ओर अफीम के व्यापार की कहानी चल रही होती है, वहीँ दूसरी ओर पाना टीपू की लव स्टोरी, वही तीसरी ओर स्कूल के तीन बच्चो की अलग कहानी चल रही होती है. मगर सीरीज कहीं भी आपको पकाऊ नही लगती .
शायद कहीं कहीं प्रेडिक्टेबल हो जाती है मगर स्क्रीन पर जो चल रहा होता है उसमे आपको मजा आ रहा होता है. और कहीं कहीं सीरीज बहुत ही ज्यादा Unpredictable भी हो जाती है. जो की सिनेमा लिबर्टी का बेहतरीन इस्तेमाल का उदाहरन है.
Guns and Gulaabs की कास्ट
जैसा की मैंने इस आर्टिकल की शुरुआत में बताया की राज एंड डीके के सिनेमा में बहुत सारे किरदार होते है. उन सबकी अलग स्टाइल होती है. उन सबकी अलग अलग कहानी चल रही होती है. और कोई भी किरदार black and white के इतर ग्रे शेड लिया होता है. और यही कमाल हुआ है Guns & Gulaabs में भी.
सीरीज में 90’s का दौर दिखाया है. तो किरदारों का नाम , उनकी स्टाइल भी उस समय के इर्द गिर्द रहती है. जैसे की सीरीज में गांची का किरदार जो की सतीश कौशिक साहब ने बड़े ही शानदार तरीके से निभाया है, वो पुरानी फिल्मो के किसी लाला सेठ की तरह लगता है.
जैसे की एक खुनी, जो की कॉन्ट्रैक्ट लेकर खून करता है. जो लम्बे बाल रखता है, खुद को उस दौर का संजय दत्त समझता है, जो की एसटीडी पर बात करते हुए 60 सेकंड्स गिन रहा होता है. 60 सेकंड ख़त्म बात ख़तम. चाहे कितनी जरुरी बात क्यों ना हो. चार कट आत्माराम , नाम भी ऐसा की जैसे उस दौर की कोई मिस्ट्री थ्रिलर नावेल का किरदार हो. जिसको आठ या दस जीवन का वरदान मिला हुआ है.
गुलशान देवियाह ने आत्माराम का किरदार निभाया है. जितना शानदार यह किरदार है उतनी ही शानदार उनकी एक्टिंग. इस किरदार को सीरीज में ज्यादा समय नही दिखाया है. मगर सीरीज के अंत आते आते यह महत्वपूर्ण किरदार बन जाता है. एक घोस्ट. खूंखार मगर सेम टाइम फनी. यही कारण है की इस सीरीज के मेकर्स ने उनको कम दिखाया है. क्योकि जिससे हम अनजान रहते है वो ही सबसे ज्यादा डरावना होता है.
जैसे की उस दौर का आशिक ” पाना टीपू ” जिसके बाप को मार दिया . मगर उसे अपने बाप की मौत से घंटा फरक नही पड़ता. मगर अपने दोस्त की मौत से पड़ता है. तो वो इस खुनी जंग में शामिल हो जाता है. क्योकि उसने पाने से दो लोगो की हत्या करदी इसलिए उसका नाम पाना टीपू पड़ गया.
राजकुमार राव का यह किरदार उनकी फिल्म “लूडो” के किरदार आलोक कुमार से थोडा मिलता जुलता सा है. मगर हमेशा की तरह राजकुमार राव ने बहुत ही बहुत ही उम्दा काम किया है. एक भोला सा मासूम व्यक्ति जो उसके बाप जैसा नही बनना चाहता मगर ना चाह कर भी उसे इस दलदल में उतरना पड़ता है.
Dulquer Salmaan ने इस सीरीज में अर्जुन वर्मा नाम के नारकोटिक्स ऑफिसर का किरदार निभाया है. शुरुआत में जितना सरल यह किरदार दिख रहा होता है. आगे सीरीज में परिस्थितिया उसे उतना ही जटिल बना देती है. दुलकर सलमान ने इस किरदार के साथ पूरा इन्साफ किया है.
आदर्श गौरब ” जूनियर गांची” या फिर “छोटू” कह लो, के किरदार में बहुत ही मजबूत काम किया है. इस सीरीज के उभरते स्टार है वो. शायद इस सीरीज के बाद उनके काम की और ज्यादा तारीफ की जाए. नाजुक सा लड़का जिसके कंधे पर उसके बाप के व्यापार को चलाने की जिम्मेदारी है.और इसी कारण वो मजबूत बनने की कोशिश करता है. जो नही है वो बनने की कोशिश करता है. और इसी कारण उसकी नादानियां ही उसे फसा देती है.
यह किरदार की लिखाई ही इतनी मजबूत है की कोई मंझा हुआ एक्टर इसे बहुत खूबसूरती से निभा सकता है. और यही खूबसूरती से काम किया है आदर्श गौरव ने . लाजवाब.
इनके अलावा सीरीज में और भी कई किरदार है. जैसे स्कूल के तीन छोटे बच्चे जिनकी अपनी अलग कहानी चल रही होती है. वहीँ पाना टीपू की प्रेमिका लेखा जो की स्कूल में इंग्लिश पढ़ाती है. उसकी अलग कहानी है. साथ ही कुछ छोटे छोटे किरदार जैसे जादू दिखाने वाला जादूगर जिसकी कमाल की एक्टिंग , पाना टीपू का पहला मित्र और दूसरा मित्र, पाना टीपू की दूकान पर काम करने वाला लड़का, सभी किरदारों का लेखन बहुत ही बारीक़ और खुबसूरत तरीके से लिखा गया है.
यही राज एंड डीके के सिनेमा की महत्वपूर्ण खासियत है.
Guns and Gulaabs की अन्य ख़ास बाते
सीरीज में समयकाल नब्बे के दशक का है तो इसमें पुराने टीवी, रेडियो, गाडिया, मोटरसाइकिल , किरदारों के कपडे, लूना, जैसी कई बारीक़ बारीक चीजों पर बड़े ही सही तरीके से ध्यान दिया गया है.
Guns & Gulaabs में अच्छी संभली हुई सिनेमेटोग्राफी की गयी है. जिसके कई सारे वाइड शॉट, हैण्ड हैंडल कैमरा मोवेमेंस्ट्स का इस्तेमाल हुआ है.
इसका बेहतरीन बैकग्राउंड म्यूजिक भी इसे 90’s का पूरा टच देता है. सीरीज में एक कुमार शानू साहब का एक गाना भी है.
इस सीरीज में डायलॉग का बहुत बड़ा योगदान है इसे मजेदार बनाने में. कई डायलॉग ऐसे है जो आपको हँसा देते है. सुमित अरोरा ने डायलॉग लिखे है.
Guns and Gulaabs का ओवरआल रिव्यु
Guns & Gulaabs एक बेहतरीन Netflix Series है. भले ही राज एंड डीके की फर्जी और फैमिली मेन जितनी प्रभावशाली ना हो मगर देखने लायक जरुर है. चाहे इस सीरीज के हँसा देने वाले कॉमेडी दर्शय या डायलॉग हो, चाहे सीरीज में जानदार किरदारों का लेखन हो, चाहे एक्शन हो सभी इस सीरीज को एक मजबूत सीरीज बनाते है.
सीरीज में ना किसी प्रकार का राजेनीति कटाक्ष है, ना किसी प्रकार का सामाजिक सन्देश, ना किसी प्रकार का घिसा पिटा फार्मूला. मेकर्स ने अपना काम ईमानदारी से किया है. एक्टर्स ने अपना काम बखूबी किया है. और एक अच्छे दर्शक की तरह आप ही इस सीरीज को देख डालो और अपना फ़र्ज़ अदा कर दो.
Tada.
Guns and Gulaabs को आप नेट्फ्लिक्स ओटीटी प्लेटफार्म पर देख सकते है. साथ ही Guns and Gulaabs को download भी कर सकते है.