mirzapur season 3 review in hindi : दोस्तों सच बताऊँ तो मुझे मिर्ज़ापुर के पिछले दो सीजन कुछ ख़ास पसंद नहीं आये थे, हाँ, टुकड़ो में अच्छे थे. मगर मेरे लिए यह एक ऐसी सीरीज नहीं थी जिसकी मैं आगे से बढ़कर तारीफ ही कर दूं. क्योकि पिछले दोनों सीजन में बेवजह की गालियाँ, बहुत ज्यादा हिंसा और औसत कहानी थी.
दूसरी बात है की यही बेफिजूल की गालियाँ, हिंसा और मुन्ना भैया की बकेती मिर्ज़ापुर सीरीज की खासियत बन गए. इसी कारण आजकल खबरों, सोशल मीडिया पर देख, पढ़ या सुन पा रहा हूँ की लोगो को मिर्ज़ापुर का तीसरा सीजन कुछ खास पसंद नहीं आ रहा. क्योकि इसमें मिर्ज़ापुर की ये तीनो खासियतें नहीं है. जिसकी वजह से यह लोगो को पसंद आ रही थी.
मगर मुझे मिर्ज़ापुर का तीसरा सीजन पिछले दोनों सीजन से ज्यादा परीपकव् ( Mature ) और समझदार लगा. क्योकि इसमें बेफिजूल की मिर्ज़ापुर की खासियतें नहीं थी. बल्कि इस बार गजब की राजनीतिक कहानी, किरदारों का तगड़ा लेखन और उनको निभायी गयी एक्टर्स के द्वारा बेहतरीन एक्टिंग इसे पिछले दो सीजन से ज्यादा बेहतर बनाते है.
दोस्तों मैंने यह सीजन शुक्रवार को देखना शुरू किया जब यह अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई थी. और रविवार तक इसे पूरी देख पाया. क्योकि इसके शुरूआती पांच एपिसोड बहुत धीमे है. इतने धीमे की कई जगह लगता है की कहानी में राजनीति चाले, षड्यंत्र चल रहे है मगर कहानी एक जगह रुक गयी है. और यही इस सीजन की सबसे बड़ी कमी है.
मिर्ज़ापुर की कहानी वहीँ से शुरू होती है जहां इसका दूसरा सीजन ख़त्म हुआ था. मतलब की मुन्ना भैया की मौत से. इस सीजन के पहले एपिसोड के पहले दर्शय से ही सीरीज के मेकर्स ने उन सारी फेन थ्योरीस पर पानी फेर दिया जो दावा कर रहे थे की मिर्ज़ापुर सीजन 3 में मुन्ना भैया वापस आयेंगे.
यही कारण है की मुन्ना भैया के नहीं होने से लोगो को उनकी कमी खल रही है. मगर मुन्ना भैया जब तक थे तब तक कहानी लोकल गुंडई तक चल रही थी. मगर उनके जाने के बाद और कालीन भैया के घायल हो जाने के कारण अब लड़ाई मिर्ज़ापुर की गद्दी की हो गयी है. जो की उत्तरप्रदेश की राजनीति का मुख्य मुद्दा बन चुका है. इसी कारण एक ओर शरद शुक्ल माधुरी यादव और कालीन भैया के साथ मिलकर गद्दी को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है. वहीँ दूसरी ओर गुड्डू भैया जो दिमाग कम ताकत ज्यादा लगाता है, गोलू के साथ मिलकर अपना वर्चस्व बढ़ा रहे है.

मगर इस शतरंज के खेल के सिर्फ ये दो मोहरे ही नहीं है. इनके अलावा जेपी यादव, दद्दा त्यागी जैसे कई और मोहरे भी है जो अपनी चाल चलने को तैयार है. इसी कारण इस बार कहानी में कई सारे किरदार है. उन किरदारों की कहानी दिखाने में पर्याप्त समय लिया गया है. साथ ही इतने सारे किरदार अपनी अपनी राजनीति लड़ रहे है. इस कारण कई बार कहानी धीमी हो जाती है. कई बार सीरीज अपने मुद्दे से भटक भी जाती है. कई बार कहानी कंफुसिंग भी हो जाती है. मगर फिर भी सीरीज में लगातार इंटरेस्ट बना रहता है. क्योकि हमेशा यह उम्मीद रहती है की आगे सीन में कुछ तगड़ा होगा.
और यही उम्मीद कई बार पूरी होती है. खासकर पांचवे एपिसोड के बाद और कई बार यह उम्मीद पूरी नहीं होती. जिस कारण यह सीरीज धीमी पड़ जाती है जो इस सीजन की सबसे बड़ी कमी है. इस सीजन में आपको उतना ज्यादा मजा नहीं आएगा क्योकि इसमें ना तो मुन्ना भैया है, ना उनकी बकेती. मगर फिर भी मुझे इसकी कहानी लेखन से कुछ ख़ास शिकायत नहीं है. क्योकि इस बार इसकी कहानी मुझे परिपक्व लगी. और यह इस सीरीज के क्रिएटर्स के साहस का उदाहरन है.
मिर्ज़ापुर सीजन 3 की एक और खासियत है इसके किरदारों का लेखन. और उन किरदारों को बेहतरीन तरीके से स्क्रीन पर प्रस्तुत किया जाना.
अंजुम शर्मा जिन्होंने सीरीज में शरद शुक्ला का किरदार निभाया है. उनके हिस्से में आया है टेहराव. शरद शुक्ल एक ऐसा किरदार है जो बाहरी रूप से शांत और समझदार लगता है. मगर उसकी आँखें हमेशा ऊपर की ओर कुछ सोचती सी दिखाई पड़ती है. इस प्रकार का व्यक्तित्व अपनी बेहतरीन जवाबदेही, शांत मन से अच्छे अच्छे दावे जीत सकता है. और इसी कारण शरद शुक्ला का किरदार इस सीजन में सबसे ज्यादा उभरकर आया है. इसी कारण अंजुम शर्मा को अपनी एक्टिंग दिखाने का भरपूर मौका मिला है. जिसे उन्होंने जाया नहीं किया. अंजुम शर्मा की आवाज साफ़ है. जो इस किरदार द्वारा बोले गए हिंदी संवादों को वजनदार बनाती है. शरद शुक्ला के किरदार को आप नेगेटिव किरदार बोल सकते है. मगर यह भी उन सभी किरदारों की तरह सिर्फ अपना फायदा सोचकर चल रहा है. जिस कारण कभी यह पसंद आता है कभी इससे नफरत होती है.

वहीँ दूसरी ओर शरद का दुश्मन गुड्डू भैया के किरदार नें इस सीजन में भी पिछले दोनों सीजन की तरह भौकाल जमाया है. यह किरदार शुरू से ही एक ऐसा किरदार रहा है जो दिमाग का इस्तेमाल करता है. ताकत का ज्यादा. यह किरदार अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर सकता. एक तरफ शरद शुक्ला शांत, समझदार किरदार है वहीँ गुड्डू दूसरी ओर खूंखार, ताकतवर और अशांत मन वाला किरदार है. जो इस सीजन में कई बार ऐसी गलतियां करता दिखाई देगा की उससे नफरत तक होने लगेगी. और यही खासियत इस सीजन मे किरदारों के लेखन की है. कभी आपको इस सीजन के किरदारों से नफरत होने लगती है तो कभी उनसे आप सहानुभूति करने लग जाते हो.
जैसे की विजय वर्मा द्वारा निभाया शत्रुघन का किरदार. जो की सीरीज में अपने जुडवा भाई की मौत के बाद उसकी जगह ले लेता है. और जगह लेने से मेरे कहने का मतलब है की वो अपने भाई का हमशकल होने के कारण सबके सामने यह जताता है की जो मर गया वो छोटा भाई था. जो जिंदा वो बड़ा है. तो इसी कारण शत्रुघन का किरदार इस सीजन में अपने ही द्वारा लिए गए कुछ निर्णयों की वजह से दुविधा में फसा हुआ दिखाई देता है. और अगर EXISTENTIAL क्राइसिस की बीमारी किसी को सच में है तो वो शत्रुघन ही है. जो बड़ा भाई दिखना चाहता है. मगर छोटे भाई की उसकी वास्तविक पर्सनालिटी को मिटा नहीं पा रहा. विजय वर्मा के इस किरदार के हिस्से में कनफ्यूजन आया है. जिसे विजय वर्मा नें बेहतरीन तरीके से निभाया है. इस किरदार की एक्टिंग देखकर मुझे विजय वर्मा की ” दहाड़ ” में निभाये गए नेगेटिव किरदार की ऊँच दर्जे वाली एक्टिंग की याद आ गयी.

इन तीन पुरुष किरदारों के अलावा इस सीजन में महिला किरदारों की लिखाई पर भी ख़ासा ध्यान दिया है. जैसे इस बार माधुरी यादव का किरदार मुख्य धारा में आ गया. जहाँ वो पिछले सीजन में मुन्ना भैया की पत्नी के रूप में जानी गयी थी. इस बार वो उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री के किरदार में रहते हुए मिर्ज़ापुर सीजन 3 की राजनीतिक चालबाजी का अहम् हिस्सा है. ईशा तलवार ने इस किरदार को ठीक ठाक रूप से निभाया है. उनकी सुन्दरता के आगे यह किरदार फीका लगने लगता है. और इस किरदार के लेखन के आगे ईशा तलवार की एक्टिंग कम लगने लगती है. प्रकाश झा की फिल्म ” राजनीति ” में केटरीना कैफ द्वारा निभाये किरदार जैसा यह किरदार है. और हाँ एक्टिंग भी कुछ कुछ वैसी ही है. मतलब की औसत सी.

रसिका दुग्गल एक बेहतरीन अभिनेत्री है. पिछले दो सीजन में उनका बीना त्रिपाठी का किरदार मजबूत था. मगर इस सीजन में इस किरदार को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है. मगर सीरीज ख़तम होते होते पता लग जाता है की यह किरदार मिर्ज़ापुर के चौथे सीजन में कुछ अलग धमाल मचाने वाला है. जितना था उतने में रसिका दुग्गल नै बढ़िया अभिनय किया है.
वहीँ शवेता त्रिपाठी द्वारा निभाया गोलू का किरदार इस सीजन में और मजबूत दिखाई दिया है. जो पिछले सीजन में गुड्डू और बबलू पंडित सहारे चल रही थी. मगर इस बार उनका किरदार अपने दम पर इस खेल में खेलता दिखाई देता है. शवेता त्रिपाठी के हिस्से में कई मजबूत दर्शय आये है. जिसमे उन्होंने बेहतरीन एक्टिंग की है. कुछ लोगो को उनकी आवाज से नफरत हो सकती है. Irritating लग सकती है. मगर इसके इतर देखे तो शवेता त्रिपाठी ने इस किरदार के साथ इन्साफ किया है.

इन किरदारों के अलावा बहुत से किरदार है जो भारतीय सिनेमा के दिग्गज कलाकारों का द्वारा निभाये गए है. जैसे गुड्डू पंडित के पिताजी का किरदार इस बार और ज्यादा दिखाई दिया है. जो इस सीरीज का ऐसा किरदार है जिसके अन्य शेड्स नहीं है. जो इमानदार है. समझदार है. मगर इस किरदार के साथ घटती परिस्थितियां दर्शाती है की रमाकांत पंडित जो कानून व्यवस्था का सम्मान करते है, उन्हें अपनी सोच पर शक होने लगा है. और इस किरदार को दिग्गज अभिनेता राजेश तैलंग नें बड़े ही बेहतरीन ढंग से निभाया है.
उसी तरह मन्नू ऋषि जैसे दिग्गज अभिनेता जिन्होंने पुलिस ऑफिसर का किरदार बड़ी ही मजबूती से निभाया है. और काफी समय बाद मन्नू ऋषि का बेहतरीन अभिनय देखने को मिलता है. मुझे आज भी ” ओये लकी लकी ओये ” में निभाई उनकी एक्टिंग याद है. क्या गजब के अभिनेता है वो.
दादा त्यागी का किरदार लिलिपुट के नाम से पहचाने जाने वाले अभिनेता ने मजबूती से निभाया है. इनके अलावा प्रमोद पाठक ने भी अपने किरदार जेपी यादव के साथ पूरा इन्साफ किया है. इस सीजन में एक नया किरदार आया है. जो बेशक लोगो का पसंदीदा बनेगा. क्योकि मिर्ज़ापुर सीजन 3 के शुरूआती एपिसोड में यह मुन्ना भैया की बकेती की कमी को पूरा करता दिखाई देता है. जिसे निभाने वाले एक्टर का मुझे नाम पता नहीं अगर आपको पता हो तो कमेन्ट में जरुर लिखे. जिसे इस एक्टर नें मजबूती से निभाया है. जहाँ यह किरदार बकेती से सीरियस किरदार बनता है जो कहानी में अलग मोड़ दे जाता है. जिसका एक दर्शय मिर्ज़ापुर सीजन 3 का बेहतरीन दर्शयो में से एक है.

इनके अलावा कई और किरदार है जिन्हें लगभग बेहतरीन ढंग से ही निभाया है.
और हाँ हमारे कालीन भैया. क्या वो भी इस बार अपना भौकाल मचाये हुए है ? यह जानने के लिए आपको यह सीरीज ही देखनी पड़ेगी.
तो मिर्ज़ापुर सीजन 3 की कहानी और एक्टिंग डिपार्टमेंट की तारीफ तो मैंने कर दी. इसके अलावा यह सीरीज मुझे इसके मजबूत निर्देशन की वजह से पसंद आई. दोस्तों क्या आपको पता है एक फिल्म निर्देशक का फिल्म या सीरीज बनाने में क्या योगदान होता है ?
जैसे सिनेमेटोग्राफर फिल्म या सीरीज को शूट करता है. जो दर्शय आप देखते है किस एंगल से दर्शय शूट किया गया है. वो काम सिनेमेटोग्राफर करता है. मिर्ज़ापुर सीजन 3 में संजय कपूर नाम के सिनेमेटोग्राफर नें यह काम किया है. और मिर्ज़ापुर में दिखाई कई दर्शय वास्तविकता के करीब दिखाई पड़ते है. उत्तरप्रदेश की गलियाँ, खेत खलियान बेहतरीन तरीके से सीरीज में दिखाए गए है. तो देखा जाए तो मिर्ज़ापुर के तीसरे सीजन में संजय कपूर ने अच्छी सिनेमेटोग्राफी की है. तो सीरीज जो हम देख रहे है अगर वो दर्शय सिनेमेटोग्राफर ने शूट किये है तो निर्देशक नें क्या किया है ?
जैसे सीरीज में म्यूजिक देने का काम म्यूजिक डायरेक्टर का होता है. जो की खुद कोई गाना नहीं गाता, अकसर खुद कोई वाघ यंत्र नहीं बजाता बल्कि इनको बजाने वालो को निर्देश देता है की गाना किसके द्वारा गाया जाना है, कैसे गाया जाना है, म्यूजिक कैसा डाला जाना है, यह निर्णय म्यूजिक डायरेक्टर करता है. जो इस सीरीज में काम किया है आनंद भास्कर नें. गाने तो कुछ ख़ास नहीं है. मगर इसमें बैकग्राउंड में बजता तगड़ा म्यूजिक आपको मिर्ज़ापुर सीजन 3 के पावरफुल होने का एहसास कराता रहता है. और इसका इंट्रो तो है ही सबसे धांसू. जिसे बनाया है जॉन स्टीवर्ट ने.
इसके अलावा मिर्ज़ापुर सीजन 3 में अली फैज़ल का एक तगड़ा एक्शन दर्शय है. जिसे बेहतरीन अली फैज़ल की बेहतरीन एक्टिंग और बेहतरीन एडिटिंग का कमाल दिखाई पड़ता है. इसमें एडिटिंग की है मानस आश्विन मेहता और अंशुल गुप्ता ने. यह सीरीज 10 एपिसोड लम्बी सीरीज है. और हर एक एपिसोड करीब एक घंटे का है. जिसे कुछ कम किया जा सकता था. बहुत सारे दर्शय कहीं कहीं लम्बे खींचे दिखाई देते है. जो भले ही कहानी को एक मंद गति से आगे बढाते है मगर एक समय बाद आपका ध्यान भटकने लगता है. इस कारण मिर्ज़ापुर सीजन 3 लम्बाई कुछ कम की जा सकती थी.
तो दोस्तों जब म्यूजिक डायरेक्टर म्यूजिक बनाता है, सिनेमेटोग्राफर दर्शय शूट करता है, एडिटर एडिटिंग करता है, एक्टरस एक्टिंग करते है, डायलॉग राइटर डायलॉग लिखते है ( जो इस सीजन में जबरदस्त है. खासकर शरद शुक्ला द्वारा बोले गए हाजिर जवाबी वाले संवाद गजब के है ). तो आखिर एक फिल्म या सीरीज निर्देशक क्या करता है ?
तो दोस्तों एक फिल्म/सीरीज निर्देशक निर्णय लेता है. की जो सिनेमेटोग्राफर नें शूट किया है वो ठीक है या नहीं. यह दर्शय किस एंगल से शूट किया जाए की दर्शय का उदेश्य दिखाई दे. सिनेमेटोग्राफर ने जो शूट किया है वो ठीक है या नहीं.
उसी तरह सीरीज या फिल्म में गाने कितने होने चाहिए, कैसे होने चाहिए, कहाँ होने चाहिए. यह निर्णय निर्देशक का होता है.
एक्टर्स जो एक्टिंग कर रहे है वो किरदारों की लिखाई के अनुसार है या नहीं. कहीं ज्यादा ओवरएक्टिंग तो नही हो रही या एक्टिंग में कुछ कमी तो नहीं रह रही.
साथ ही जो एडिटिंग है उसे और ज्यादा मजबूत किया जाए या नहीं.
मिर्ज़ापुर सीजन 3 के निर्देशक है गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर. उन्होंने इस सीजन को गंभीर रखा है. बेवजह के मिर्ज़ापुर की बकेती नहीं रखी है. उन्होंने अपने क्राफ्ट पर भरोसा रखा है. और मेरे अनुसार वो अपने इन निर्णयों में सफल हुए है. मिर्ज़ापुर सीजन 3 ग्रैंड दिखाई देता है. खौफ का मज्नर निरंतर बना रहता है. तगड़ी चालबाजी चलती रहती है. और अंत के कुछ एपिसोड आपको इसके बेहतरीन होने का एहसास दिलाते है.
जो लोग कह रहे है की मिर्ज़ापुर का तीसरा सीजन कमजोर है. मजा नहीं आ रहा. मजा मुझे भी नहीं आ रहा था पांचवे एपिसोड तक. मगर यह सीरीज धीमी है. जो आपके धेर्य की परीक्षा लेती है. मगर एक बार आप पांचवे एपिसोड तक इसे देख ले. तब अंतिम पांच एपिसोड आपको भरपूर मजा दिलाते है. जैसा की गुड्डू भैया सीरीज में कहता है ” मजा आ रहा है, हमको , मजा आ रहा है “.
