Panchayat Season 3 Review in Hindi : पंचायत का पहला सीजन एक प्यारा सा शो था. जिसकी सादगी ने दर्शको का दिल जीत लिया था. इसके दूसरे सीजन में भी यही सादगी और प्यारापन जारी रहा मगर दूसरा सीजन अंत में आपको इमोशनल कर देता है. मगर तीसरा सीजन जहाँ शुरुआत में पहले और दूसरे सीजन का सादगीपन और इमोशनल भाग दिखाता है वहीँ अंत आते आते यह आपको पंचायत से जुडी राजनीति और उस राजनीति से जुड़ा एक्शन ड्रामा बहुत ही बारीकी से बेहतरीन तरीके से दिखाता है. जिस कारण यह शो भारतीय वेबसीरीज की दुनिया का ऐसा शो बन जाता है जो अपने हर नए सीजन के साथ और ज्यादा मेंच्यूर हो रहा है. और आने वाले सीजन के लिए आपके मन में जिज्ञासा छोड़ जाता है.
तो दोस्तों पंचायत का तीसरा सीजन अमेज़न प्राइम पर आ चुका है. आप सभी को मालूम है की यह एक अच्छा शो है. मगर क्या यह पिछले दो सीजन से अच्छा है या उनसे कम. अगर अच्छा है तो वो कौन सी खासियते है जो इसे बेस्ट बनाती है. इन सभी विषयों पर हम विस्तार से बात करेंगे पंचायत के तीसरे सीजन के रिव्यु में .
panchayat season 3 review in hindi
कहानी
पंचायत के तीसरे सीजन की कहानी वहीँ से शुरू होती है जहाँ दूसरे सीजन का अंत होता है. प्रहलाद चा अपने बेटे को खोने के गम में है. अभिषेक जी का विधायक ने ट्रान्सफर करवा दिया है. सहायक विकास और प्रधान कोशिश कर रहे है की फुलेरा पंचायत में नया सचिव ज्वाइन नहीं कर पाए. वहीँ विधायक जी नाराज है की उनको फुलेरा गाँव से बेइजत करके निकाला गया. भूषण जी की ” देख रहा है विनोद ” कर करके अब भी अपनी अलग ही पंचायती जारी है. रिंकी अभिषेक जी को व्हाट्सएप्प पर सारी खबर देती रहती है.
पंचायत के तीसरे सीजन का पहला एपिसोड ही माहोल सेट कर देता है की गुरु एक बेहतरीन लेखन का कमाल का शो देखने जा रहे हो. मैंने पहले भी कई बार जिक्र किया है की टीविएफ वालो के कंटेंट में उनकी सबसे मजबूत बात है उनका लेखन. उनके कहानी लिखने की कला. क्योकि जैसे पंचायत का पहला सीजन हर एपिसोड के साथ हर एक नए मुद्दे उपरी तौर पर बिना ज्यादा गंभीर हुए दिखा रहा था. वहीँ इसका दूसरा सीजन और नए मुद्दों और किरदारों के जीवन को और ज्यादा विस्तार से बता रहा था. मगर इसके तीसरे सीजन में कहानी एक कदम आगे बढ़ गयी है. अब छोटे मोटे मुद्दों से हटके तीसरे सीजन की कहानी गाँव में हो रही राजनीति, उस राजनीति से जुड़े ड्रामा को बहुत ही बेहतरीन तरीके से दिखाती है. और यह सब कमाल किया है चन्दन कुमार की बेहद कमाल की राइटिंग नें.
क्योकि जब आप तीनो सीजन को देखते हो तो पता चलता है की लगातार इस शो का लेवल आगे बढ़ ही रहा है. यह शो जहाँ पहले सीजन में छोटे छोटे एनिकडॉट्स के माध्यम से कहानी आगे बढ़ा रहा था वही इसका तीसरा सीजन निरंतर एक मुद्दा लेकर चलता है जो है राजनीति. और राजनीति में ड्रामा होता है, लड़ाई होती है, इमोशनस होते है. इन सबको चन्दन कुमार नें बहुत ही कमाल तरीके से कहानी में पिरोया है. जिसकी तारीफ करनी होगी.
तो हमेशा की तरह कहानी और स्क्रीनप्ले में यह शो एक बार फिर कमाल कर गया. आपको कहीं भी बोर नहीं होने देगा. आपको बोरियत से बचाने के लिए यह कम स्तर के पेंतरे अजमाने के बजाय कहानी में राजनीति इस तरह डालता है की आपको पता ही नहीं चलता है एक सड़क के गढ़े से शुरू हुआ मुद्दा पूरी कहानी में राजनीति को इस तरह उभार सकता है. कमाल कर दिया चंदन कुमार ने.
किरदार
चंदन कुमार नें कहानी लिखी है. कहानी जितनी बेहतरीन है उतनी ही बेहतरीन है इसके किरदारों की बनावट. क्योकि इसके तीसरे सीजन में हम किरदारों के अलग अलग रूप देखने को मिलते है. जिस प्रहलाद जी को हमने पिछले दो सीजन में हस्ते खेलते देखा था वो इस सीजन में अपने बेटे को खोने के गम में उदास रहता है. शुरूआती कुछ एपिसोड में उसका गम, अकेलापन हमें दिखाया जाता है. मगर जैसे जैसे शो आगे बढ़ता है हमें प्रहलाद जी का किरदार गमगीन इंसान से कठोर और मजबूत इंसान बनता दिखता है. जो की बिलकुल भी बनावटी नहीं लगता है. ऐसा नहीं लगता की अभी तो यह गम था और अगले ही बल इसका स्वभाव बदल गया है. यही खासियत है पंचायत के किरदारों के लेखन की.
प्रहलाद चा को निभाने वाले हमारे प्यारे फैसल मलिक. जिनको मैंने पहली बार गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में थानेदार के किरदार में देखा था. वहां फैसल मलिक नें छोटे से किरदार को अपनी कमाल की एक्टिंग से ध्यान देने योग्य बना दिया था. और यहाँ तो उनके पास भरपूर समय था अपनी कला की प्रतिभा दिखाने का.उन्होंने क्या खूब और कमाल काम किया है. इस सीजन के बेहतरीन किरदारों में से एक प्रहलाद चा के किरदार को उतने ही बेहतरीन ढंग से निभाया है फैसल मलिक ने.
वही हमारे जीतू भैया. तो है ही कमाल के. याद है पहले सीजन में फकौली बाजार में जीतू भैया की लड़ाई. उस समय लड़ाई छिछले तौर पर हुई थी. मगर इस सीजन में जीतू भैया का गुस्सा और एक्शन हमें एक एक कदम आगे दिखता है. अभिषेक जी उर्फ़ सचिव जी का अब फुलेरा गाँव से ज्यादा लगाव हो गया है. जिसके दो कारण है. पहला उन्होंने यहाँ काफी समय गुजारा है. दूसरा प्रधान जी की बेटी रिंकी से उनका लगाव.
इस सीजन में रिंकी के किरदार को और ज्यादा विस्तार से दिखाया है. साथ ही रिंकी और अभिषेक के बीच पनपते प्यार को भी दिखाया है. मगर इसको दिखाने में लेखक ने बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं की. ऐसा नहीं है की एक गाना दिखाया और दिखा दी दोनों की लव स्टोरी. बल्कि ऐसे दिखाया है जैसे की आज भी गाँवो में या छोटे शहरो में जब एक लड़का लड़की एक दूसरे से प्यार करते है या प्यार में पड़ने वाले होते है तब दोनों के बीच संवाद कम और आँखों से ही बातें कह जाने के भाव ज्यादा आने लगते है. जिन्हें थोडा डर भी होता है की गाँव के लोग साथ बैठे भी देख लेंगे तो बातें बनाने लग जायेंगे.
हम सभी ने पहले सीजन से देखा है की प्रधान – पति अच्छे आदमी है. मगर शायद थोड़े बुरे भी है. इस सीजन में उनके किरदार को हटी या जिद्दी रूप में भी दिखाया है. रघुबीर यादव कमाल के एक्टर है इसमें कोई दो राय नहीं है. और यहाँ भी उन्होंने बेहतरीन एक्टिंग स्किल्स से दिल जीत लिया.
नीना गुप्ता जी ने भी उम्मीद के अनुरूप अभिनय किया है. मगर जो किरदार इस तीसरे सीजन में कमाल के लिखे गए है. वो है विधायक जी का किरदार. यह किरदार हमने पहली बार दूसरे सीजन में देखा था. घमंडी, गुस्सेल, एक बाहुबली नेता की तरह दिखने वाला किरदार. इस सीजन में भी उनका यही रूप दिखाया गया है. मगर जब वो अपने घोड़े को बेच रहे होते है. तब उनका रोना हमें बताता है की होगा यह घमंडी, गुस्सेल, नेगेटिव किरदार मगर है तो वो भी इंसान ही. उसका भी दिल पसीजता है. और बॉस पंकज झा ने जान फूक दी है इस किरदार में. एक मंझे हुए एक्टर की यही खासियत होती है की वो इस लेवल के किरदार को बहुत ही आराम से निभा जाते है.
वहीँ दुर्गेश कुमार का किरदार इस सीजन का मुख्य विलन है. जिसे सिर्फ देखने भर से ही हंसी आ जाती है. चाहे गंभीर परिस्थिति ही क्यों ना हो. साथ ही विनोद का किरदार निभाने वाले एक्टर अशोक पाठक ने कमाल का काम किया है. इस बार विनोद का किरदार भी हमें और ज्यादा दिखाई देता है. और गजब का काम किया है अशोक पाठक ने. सहायक विकास का किरदार निभाने वाले चन्दन रॉय नें भी अच्छा काम किया है.
तो दोस्तों पंचायत सीजन 3 के किरदारों का लेखन बहुत ही कमाल का है. अधिकतर किरदारों को विस्तार से दिखाने के कारण ही उनके अलग अलग रूप को बहुत ही सही ढंग से दिखाया है.
सिनेमेटोग्राफी, संवाद, एडिटिंग और अन्य तकनीकी पहलु
अमिताभा सिंह की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.
अमित कुलकर्णी की एडिटिंग भी अच्छी है. कोई शिकायत नहीं.
पंचायत शो के संवाद नेचुरल होते है. और इस सीजन में भी संवाद ऐसे लगते है जैसे आप खुद उस गाँव में खड़े हो. और इन लोगो की बाते सुन रहे हो. ” पल्ले पड़ना ” शब्द बताते है की संवाद कितने वास्तविक से लगते है.
स्वानंद किरकिरे की आवाज में आसमान रूठा गाना आपको इमोशनल कर देता है. साथ ही शो में एक गाना है हिन्द का सितारा जो की यू.पि का माहौल बताता है. बेहतरीन म्यूजिक इस सीजन की कहानी की बहुत अच्छे तरीके से आगे बढाता है.
जब भी गाँव में कोई मीटिंग बैठानी हो, भूषण जी को अपनी पंचायती करनी हो तो चाय ही वो डोस डोस देती है. उसी तरह जैसे सचिव जी और रिंकी के प्यार का मीडिएटर का काम करती है गाँव की पानी टंकी.
ओवरआल रिव्यु – पंचायत सीजन 3
पंचायत का तीसरा सीजन पिछले दो सीजन से एक कदम आगे है. लगातार यह शो बेहतर ही होता जा रहा है. जिसके लिए सबसे ज्यादा तारीफ इसके निर्देशन की करनी होगी. दीपक कुमार मिश्रा का निर्देशन कमाल का है. उन्होंने कहानी में सभी चीजों को बहुत ही बारीकी से पिरोया है. शो में लोगो के कपडे, गाँव में चाय की दूकान में बनती पानी की चाय और गाँव का माहौल वास्तविकता के करीब लगता है.
पंचायत को बनाया है टीविएफ पिक्चरस ने. जिन्होंने इससे पहले भी मामला लीगल है, काला पानी, परमानेंट रूममेट, पिचर्स, कोटा फैक्ट्री जैसे बहुत ही कमाल के शो बनाये है. और आगे भी उम्मीद है की ये कमाल ही करेंगे. साथ ही जिस जगह पंचायत के तीसरे सीजन को ख़तम किया गया है तो लग रहा है की सीजन 4 में और भी ज्यादा बवाल मचने वाला है.
पंचायत का तीसरा 3 एक बेहद शानदार शो है. जिसे आपको जरुर देखना चाहिए.