Pushpa 2 Hindi Review : बात यह नहीं की यह मास फ़िल्म है. बात यह है की मास फ़िल्म के नाम पर आप दर्शकों को क्या परोस रहे है. और बात यह भी नहीं की यह फ़िल्म कितनी बड़ी ब्लॉकबस्टर फ़िल्म रहेगी, बात यह है की क्या सिनेमा लिबर्टी के नाम पर आप कुछ भी दिखा सकते है.
आप कहानी पर मेहनत नहीं करोगे. अगर करते तो आपकी कहानी में इतने सारे विलन कहीं से भी टपक नहीं पड़ते. आपकी फ़िल्म का हीरो इतना ताकतवर है की उसके सामने सब झुक जाते है मगर हीरो किसी के सामने नहीं झुकता. और आपको जब यह पता है तो क्या विलन, क्या हीरो की परेशानिया.
मगर सिनेमा की असली समझ होती तो यह पता होता की हीरो के सामने जितनी बड़ी परेशानी, उतना मजबूत हीरो बनता है. हीरो के सामने जितनी जटिल दुविधाये होंगी, उतना मजबूत हीरो बनता है.

यही कुछ बहुत बड़ी खामियाँ दिखेगी पुष्पा 2 : द रूल में, जब आप अपना दिमाग़ और आपकी समझ थोड़ी बहुत भी लगाने लगोगे. क्योंकि आपने शिक्षा प्राप्त करी है. आपकी समझ बढ़ी है. आप शायद किताबें पढ़ने का शौक रखते है. आप शायद अच्छा सिनेमा देखने का शौक रखते है. तो कैसे आप इस फ़िल्म में ऐसा कुछ देखकर हजम कर जाते जो हद से ज्यादा ही नाममुमकिन सा लगे.
पुष्पा का पहला भाग मुझे इसलिये पसंद आया था क्योंकि उसमे कहानी और किरदार को थोड़ा जमीनी स्तर तक रखा गया था. उसमे एक्शन सीन्स को भी कहीं न कहीं हजम करने लायक रखे गए थे. मगर पुष्पा 2 : द रूल में तो फ़िल्म के शुरुआत में ही हीरो को एक कांटेनर में बंद बताया गया जो की करीब 40 दिन तक उसमे बंद था. मगर फिर भी पुष्पा भाऊ मरता नहीं. बल्कि वो चालीस दिनों में जापानी भाषा भी सीख जाता है एक छोटी सी जापानी भाषा सीखने की किताब से. चलो यह भी सह लेते. मगर जब वो ज़मीन से कई फ़ीट की ऊचाई पर ऐसे एक्शन करते दिखाया जाता है की मानो वो कोई सुपरहीरो हो तो एक इंसान की कहानी और सुपरहीरो की कहानी के बीच में द्वन्द उठने लगता है.
चलो ये सब भी सहन कर लिया जाए मगर फ़िल्म के क्लाइमेक्स में पुष्पा भाऊ हाथ पैर बंधे होने के बावजूद जो उछल उछल कर अपने दातो से कांट कर गुंडों को मार गिराता है. तो एक इंसान की कहानी और ड्राकुला की कहानी के बीच द्वन्द उठने लगता है. आखिर यह कैसे सहन कर लिया जाए. फिर तो फ़िल्म बनाने वाले कुछ भी दिखा सकते है.
या तो वो दर्शकों को बेवकूफ समझते है या वो ज्यादा समझदार है. और फिर लोग कहते है की बॉलीवुड पीछे जा रहा है. इसका कारण यह है की जैसे आजकल इंटरनेट की दुनियां में छपरियो का आतंक छाया हुआ है, जैसे डोली चायवाला, पुनीत सुपरस्टार, वैसे ही सिनेमा की दुनियां में KGF, सालार, कंगुआ और पुष्पा जैसी छपरी फिल्मों का बोलबाला है.

एक्शन सिनेमा देखना है तो जॉन विक देखो. जिसमे हीरो कइयों बार मार ख़ाता है. या फिर मिशन इम्पॉसिबल देखो जिसमे भले ही हीरो प्लेन से कूदता है, प्लेन चढ़ता है, मगर वो खुद एक्शन करता है जो की काफी हद तक होने लायक सा लगता है. एक्शन में कहानी नहीं होती. कहानी में एक्शन होता है. और यही खासियत एक मजबूत फिल्म का उदहारण है.
मगर ऐसा नही है की पुष्पा 2 में सिर्फ कमियां ही है. या मैं तो यह कहूंगा की जब आप सिनेमाहाल में तेज म्यूजिक और दर्शकों की भीड़ के साथ यह देखते हो तो आप भी कुछ हद तक उस माहौल में ऐसे ढल जाते हो की आप कई सारी चीज़ो को नजरअंदाज़ करने लगते हो. कहानी इतनी कसी हुई बनाई हुई है की आप कहानी में घट रही कई सारी घटनाओ पर विचार करें उससे पहले नई घटना या नया विलन किसी टीवी सीरियल में टपक पड़ने वाले किरदार की तरह आ जाते है. और चले जाते है. और फिर आ जाते है.
मगर फिर भी आपको फ़िल्म देखते वक़्त मजा आ रहा होता है. क्योंकि फ़िल्म में फहाद फ़ाज़िल है. शेखावत नाम का उनका किरदार है. जो पुष्पा से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता है. और इसी बदला लेने की चाहत में हमें स्क्रीन पर चूहें बिल्ली वाली भाग दौड़ पुष्पा और शेखावत के बीच देखने को मिलती है. जो बहुत ही गजब को लगती है. और यह पार्ट ही फ़िल्म का सबसे मजबूत पार्ट है. जब पहली बार दोनों आपने सामने आते है वो दर्शय भी गजब बन पड़ा है मजा आता है. फुल माहौल सेट.
एक तरफ से कन्धा नीचा वाला पुष्पा जब एक्शन करता है तो सही हो जाता है. मगर इसी स्टाइल को अल्लू अर्जुन ने और ज्यादा स्टाइलिश बना दिया की. आपको इस शारीरिक कमी में भी पुष्पा का स्वेग दिखने लगता है. वहीँ अल्लू अर्जुन की पत्नी के किरदार में रश्मिका मन्दाना के पास उतना ही काम था जितना हमारी पित्रस्तात्मत्क समाज में घर की महिलाओं का रहता है. या वो खाना बनाती दिखाई देती है या पुष्पा का मूड बनाती दिखाई देती है. उनके पास ज्यादा कुछ करने को है नही. जो था उसमे उनके इतने घटिया डांस स्टेप्स थे की आपको शर्म आ जाए ऐसे स्टेप्स देखकर.

उन स्टेप्स के सूत्रधार गानों का तो क्या ही कहना. जो जितने घटिया सुनाई पड़ते है, उससे ज्यादा वो दिखाई पड़ते है. मतलब की बहुत ही वाहियात कोरियोग्राफी. पता नहीं कौनसा नशा करके ये डांस मूव्स डाले गए है फ़िल्म में. ऐसा लगता है जैसे हम कोई भोजपुरी फिल्म देख रहे है मगर बड़े बजट वाला.
पुष्पा 2 को आप पेन इंडिया भोजपुरी फ़िल्म भी मान सकते है. या आप इसे टेस्टॉस्टरों बूस्टर भी मान सकते है. या आप इसे पुष्पा 2: द आर्गेसम गिवर भी कह सकते है. जो बात बात पर फ़र्ज़ी डायलॉग, कान फाड़ देने वाले म्यूजिक के सहारे और कई बार पुष्पा की स्लो मोशन एंट्री के सहारे छपरी दर्शकों को पुष्पा नाम का आर्गेम्स दे जाते है. हमारे सलमान भाई करे तो logic याद आता है लोगो को. और साउथ की फिल्मो में ऐसा हो तो तालियाँ पिटी जा रही है.
खेर पीट तो मैं रहा था अपना माथा जब कुछ भी अंट शंट होते देख रहा था. और यह बताओ को दक्षिणी सिनेमा में यह रेप वाले दर्शयो से क्या लगाव है. विलन को खूंखार दिखाना है तो रेपिस्ट बना दो. भाई कुछ नया प्रयास करो. दिमाग के घोड़े दौडाओ. कुछ नया सिनेमा देखो.
हाँ कुछ नए से याद आया इस फ़िल्म के क्रिएटर्स ने कान्तारा देखी होगी. उसमे क्लाइमेक्स देखा होगा. बस वैसा ही करने की कोशिश की गयी है इस फिल्म में भी. मगर ऐसा लगता है जैसे जबरदस्ती करवाया जा रहा है. जिसकी कहानी में कोई जोड़ नजर नहीं आता.
बाकी मैं इस फ़िल्म को एक लाइन में रिव्यु देना चाहूँ तो फ़िल्म ठीक है सिनेमाहाल में देखने लायक़ है. या आप अच्छा सिनेमा देखने की ललक रखते है तो रहने ही दीजिये.
बाकी अगर आप देखना ही चाहते है तो देखो और पूछो की किसी स्तर तक सिनेमा की इमेजिनशन को ले जाया जा सकता है. कहानी जब एक इंसान के बारे में है तो आखिर कैसे उसमे किरदार को सुपरहीरो की तरह बनाया जा सकता है. जिसके सामने सारे विलेन, कानून सब फेल जो जाते है.
एक मजबूत किरदार तब ही बनता है जब उसके सामने मजबूत विलन हो, मजबूत परेशानियां आये. यहाँ तो भाई किसी के सामने झुकता ही नहीं. बाकी मेरे फेवरेट फहाद फ़ाज़िल के किरदार को जिस तरह से जोकर बना दिया गया है. पाप लगेगा तुम्हे पुष्पा बनाने वालो. पाप.