70 के दशक में जब अमिताभ बच्चन कई सारे गुंडों को मारकर हीरोइन या फिर बस्ती वालो को बचा लेता था तो कहा जाता था की यह भारतीय सिनेमा का हीरो है. यह कुछ भी कर सकता है.
उसी तरह Salaar फिल्म में हम प्रभास को स्लो मोशन में कई सारे गुंडों को मारते देखते है तो शरीर में खून का दौड़ना तेज हो जाता है शायद वैसे ही जैसे पुराने जमाने में हीरो गुंडों को मारता था.
भले ही इस प्रकार की मास एक्शन फिल्म में हीरो का कई सारे गुंडों को मारता देख लॉजिकल रीजनिंग बीच बीच में आने लगती है और सवाल खड़े होने लगते है की आखिर ये कैसे पॉसिबल है ?
मगर यही सिनेमा विधा की स्वतंत्रता है. जो एक क्रिएटर को एक टिपिकल सोच से परे जाकर उसके आर्ट को प्रस्तुत करने की कला प्रदान करती है.
भले ही हम पहले भी हीरो को कई सारे लोगो को स्लो मोशन में मारते देख चुके हो. मगर फिर भी जब हम सलार में फिर से ऐसा होते देखते है तो प्रशांत नील के बेहतरीन विजन के कारण हम अपने मन में उठ रहे लॉजिक वाले सवालों को परे करने पर मजबूर हो जाते है.
Salaar में खूब एक्शन है, तेज गूंजता बैकग्राउंड म्यूजिक है, डायलॉग कम है मगर जब बोले जाते है इंपैक्ट छोड़ जाते है, हर एक दर्शय विशाल लगता है. आगे क्या होने वाला है उसका बिल्ड अप तैयार किया जाता है और जब होता है तो धमाका होता है. जो देखने वाले के शरीर में डोपामिन डिटॉक्स करता है. और यही प्रशांत नील का सिनेमा है.
तो आइए और गहराई में बात करते है की आखिर Salaar क्यों मुझे पसंद आई. जबकि इसका ट्रेलर मुझे औसत लगा था. साथ ही मुझे प्रशांत नील की पिछली फिल्म KGF 2 पसंद नहीं आई थी. मगर ऐसा क्या खास है सलार में. जो इसे एक बेहतरीन एक्शन फिल्म बनाता है मेरे अनुसार. ( नोट : यह रिव्यू किसी भी प्रकार से पैसे के लालच में झूठे रूप से नही लिखा गया है. यह सलार को देखने की मेरी व्यक्तिगत दृष्टि है )
आइए जानते है Salaar Film Review में.
Salaar Review
सिनेमैटिक दर्शयो वाली मसाला फिल्म
प्रशांत नील की पिछली फिल्म KGF 2 मुझे बिल्कुल भी पसंद नही आई थी. क्योंकि उस फिल्म में दर्शय भले ही विशाल थे मगर जल्दी जल्दी घटते हुए दिखाई दिए थे.
मगर ऐसा लगता है सलार फिल्म से प्रशांत नील की फिल्ममेकिंग में और ज्यादा इम्प्रूवमेंट हुई है. यही कारण है की सलार फिल्म में कई सारे दर्शय अपने आप में थ्री एक्ट स्ट्रक्चर पर बेस्ड लगते है.
Three Act Structure मतलब फर्स्ट एक्ट में परेशानी खड़ी होगी. सेकंड एक्ट में उस सीन की परेशानी के सुलझने का उपाय आएगा और थर्ड एक्ट में बूम. एक धमाके के साथ Conclusion आएगा.
यह Conculsion चाहे एक्शन से आए, चाहे कोई राज खुलने से या चाहे दमदार म्यूजिक के साथ डायलॉग के द्वारा. फिल्म के माहौल में जान भर देता है.
यही कारण है की SALAAR के हर एक सीन पर मेहनत दिखाई देती है. क्रिएटर्स का पैशन दिखाई पड़ता है. हर एक दर्शय सिनेमैटिक रूप से आकर्षक लगता है.
अमिताभ बच्चन के 70 के दौर का अपग्रेड एक्शन हीरो
सलार फिल्म में प्रभास के पास बहुत कम संवाद है. यही कारण है की सलार का मुख्य किरदार देवा कम बोलने वाला मगर ज्यादा ठोकने वाला एक्शन हीरो लगता है जो हमें अमिताभ बच्चन के एक्शन दौर की याद दिलाता है . जब बच्चन डायलॉग कम बोलता था और लात घूंसे ज्यादा चलाता था.
प्रभास के किरदार पर एक गंभीरता दिखाई देती है. जो उसके जीवन में हुए कष्टों को दर्शाता है. उसका रंग सावला है जो लोहे की भट्टी में काम करके हुआ है. जो उसके कठोरपन को दर्शाता है.
फिल्म के फर्स्ट हाफ में मुश्किल से कुछ डायलॉग है प्रभास के पास. मगर एक्शन खूब है. जो बड़े ही धांसू लगते है.
आप चाहो तो इस तरह के किरदार की आलोचना कर सकते हो की कैसे एक बंदा इतने लोगो को मार सकता है. मगर आप अपनी सोच को थोड़ा विस्तृत करके सोचे तो देख पाएंगे की यह एक सिनेमा है. जिसमे कुछ रियलिस्टिक फिल्मे होती है तो कुछ सलार,KGF जैसी अवास्तविक फिल्मे.
एक क्रिएटर किस हद तक अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से दिखाकर अपने क्राफ्ट के माध्यम से एक जबरदस्त एक्शन दिखा सकता है.
सलार का खानसार और ग्रैंड प्रोडक्शन
Salaar part 1 – Ceasefire फिल्म में खांसार नाम की एक काल्पनिक जगह बताई गई है. जो भारत में है. जहां नदी, पहाड़,कोल माइनिंग की फैक्टरी है. खानसर एक पूरे देश की तरह दिखाया है, जहां के अपने कानून है. जहां बिजली,पानी, लोग, घर सब है. लेखक की इसी कल्पना को प्रशांत नील ने अपने पैशन और अच्छे विजन के कारण बड़े ही भव्य रूप से दिखाया है.
फिल्म में बड़े बड़े ट्रक, गिच पिच बस्तियां, बहुत सारे किरदार है, अलग अलग प्रकार की वेशभूषा है. एक फिल्म को जो चीज भव्य बनाती है वो बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है.
खानसार में हमें डार्कनेस दिखाई देती है. वहां की क्रूर दुनिया दिखाई देती है. भुवन गोवडा की सिनेमेटोग्राफी जिसे और भी ज्यादा बेहतरीन और भव्य रूप में दिखा पाती है.
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OG बैकग्राउंड म्यूजिक
देवा हिंसा से दूर रहना चाहता था. मगर परिस्थितियाँ उसे फिर से उस हिंसक दुनिया में धकेल देती है. सलार फिल्म में एक दर्शय है जब हिंसा से दूर रहने की काफी कोशिश करने के बावजूद उसे हिंसा में उतरने के दौरान गुंडों की ओर कदम आगे बढ़ाने होते है तब धांसू बैकग्राउंड म्यूजिक बजता है. और पूरे एक्शन सीन के दौरान इसी प्रकार का बैकग्राउंड म्यूजिक दश्य को और मजबूत कर देता है. और आपको सीट से उछलने को मजबूर.
रवि बसरूर का जबरदस्त म्यूजिक सलार के दर्शयो को उचा उठाते है.
भले ही बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत ज्यादा शोरगुल वाला है. जो आसानी से फिल्म में डायलॉग्स को दबा सकता था. मगर क्रिएटर्स ने इस बात का बहुत ध्यान रखा. और जब भी तेज बजते बैकग्राउंड म्यूजिक के बीच डायलॉग बोला जाता तो उसी पल म्यूजिक धीमा हो जाता है और डायलॉग तेज.
क्योंकि फिल्म में डायलॉग बोलने की स्टाइल भी विशाल है. तो इतने तेज बैकग्राउंड म्यूजिक होने के बावजूद भी संवाद ठीक से सुनाई पड़ते है.
कमियां
देखा जाए तो जो चीज एक फिल्म को कमजोर बनाती है उन्ही का ठीक से इस्तेमाल करके salaar को एक अच्छी एक्शन मूवी बनाने में कामयाब हुए प्रशांत नील.
जैसे सलार फिल्म करीब 3 घंटे लंबी मूवी है. मगर फिल्म की अच्छी पकड़ वाली स्टोरी और अच्छे स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म बोरिंग नही होती.
जैसे फिल्म के मुख्य किरदार का स्लो मोशन में कई सारे लोगो को मारना एक फिल्म के माइनस पॉइंट्स होता. मगर इस फिल्म में सीन्स को एक हद तक लंबा खींचा जाता है और तगड़े संवादों से सीन में आगे क्या होने वाला है उसकी भनक दी जाती है. और जब एक्शन होता है तो मजा आ जाता है. आप खुद को इस प्रकार के इलॉजिकल एक्शन सीन्स के सामने सरेंडर कर देते हो.
मगर फिर भी फिल्म में बहुत ज्यादा स्लो मोशन का इस्तेमाल फिल्म को लंबा कर देता है. यही कारण है की फिल्म के अंत आते आते शायद कुछ दर्शक बोरियत महसूस करे. मगर यह हर एक दर्शक की निजी दृष्टि है.
जैसे फिल्म की कहानी अच्छी है. मगर कई बार इतनी तेज भागती है को आपको अटपटी लगने लगती है. शायद कुछ ज्यादा ही अविश्वसनीय लगने लगती है. जो कहानी को थोड़ा कमजोर करती है.
ओवरआल रिव्यु – Salaar
मैने ऊपर लिखा है की यह रिव्यू मेरी निजी सोच और फिल्म को देखने की निजी दृष्टि पर आधारित है. इसमें किसी प्रकार का कोई लोभ नही है. ऐसा मैंने इसलिए लिखा क्योंकि सलार फिल्म का ट्रेलर कई लोगो को पसंद नही आया था. साथ ही फिल्म का लुक प्रशांत नील की पिछली फिल्म KGF की तरह लग रहा था. जिस कारण इसकी आलोचना भी हो रही थी. साथ ही फिल्म के रिलीज होने के बाद इसको mix रिव्यू मिले. साथ ही प्रभास की लगातार फ्लॉप होती फिल्मों को देखकर लोगो ने उनकी फिल्मों से अब एक ही प्रकार का परसेप्शन बना लिया है.
और मेरा भी कुछ यही परसेप्शन था इस फिल्म को देखने से पहले. इसी कारण इस फिल्म को सिनेमा हाल में देखना मैने प्रेफर नही किया. मगर अभी हाल ही में जब सलार नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई तो इसे देखने का मौका मिला.
और सलार को देखने के बाद मुझे लगा की कैसे हमारी पूर्व अवधारणा किसी फिल्म को फ्लॉप करवा सकती है.
सोचो एक मास एक्शन फिल्म है. जिसका तगड़ा बजट है. मुख्य हीरो की कई फिल्मे फ्लॉप हो चुकी है. क्रिटिक्स पहले ही मास एक्शन फिल्मों से नफरत करते है. जिसमे शायद कुछ नया नही है. मगर फिर भी प्रशांत नील की मेहनत और क्रेटिविटी इसे एक बेहतरीन एक्शन फिल्म बनाती है. बशर्ते आप अपनी सोच को इस प्रकार की मास एक्शन फिल्म को स्वीकार करने दो.
तो अंत में यही कहना चाहूंगा कि सलार मुझे पसंद आई. यह कोई ग्रेट फिल्म नही है. मगर यह मास एक्शन फिल्मों में क्रिएटिविटी को अलग लेवल पर ले जाती है.
शायद यह फिल्म आपको पसंद नही आए. मगर इस फिल्म की मेहनत, क्रिएटिविटी साफ दिखाई देती है इसके सिनेमैटिक विजन में.