कहते है झूट कितना ही ताक़तवर क्यों ना हो जाए मगर अंत में वो सच्चाई के सामने हार ही जाता है. मगर सच्चाई तो यह है की उस सच्चाई को जीतने में बहुत से ऐसे हमले झेलने पड़ते है जो इंसान को तोड़कर रख देते है. उनसे उनका करियर, उनका आत्मविश्वाश, उनका सामाजिक मेल जोल छीन लेते है और इस पीड़ा दर्द को बताती हुई हाल में आई Netflix की सीरीज SCOOP की कहानी भी जाग्रति पाठक के झूट और सच के बीच की जंग को बताती है.

Scoop Review
कहानी
जाग्रति पाठक जो की एक अंग्रेजी अख़बार ईस्टर्न एज में पत्रकार के रूप में कार्यरत है और अपने काम के प्रति इमानदार है. मुंबई में वो अपने परिवार के साथ रहती है जिसमे उसका एक 10 साल का बेटा भी शामिल है. वो अपने काम, अपने करियर को लेकर Ambitious है. उसे मुंबई में एक घर भी खरीदना है.
हर दिन अख़बार के फ्रंट पेज पर exculsive न्यूज़ पाने की होड़ लिए अन्य पत्रकारों की तरह जाग्रति भी एक्सक्लूसिव न्यूज़ के लिए जी तोड़ मेहनत करती है. इसी कारण उसकी पहचान कई सारे पुलिस के बड़े अधिकारियो, कुछ क्रिमिनल्स से है. एक तरफ जहाँ उसे अभिमान है अपने ऐसी महिला पत्रकार होने पर जो की एक क्राइम रिपोर्टर भी है. तो दूसरी तरफ उसे एक महिला होने के कारण बलि का बकरा बनाकर पत्रकार जयदीप सैन के मर्डर के केस में फसा दिया जाता है.
पुलिस की गलत चार्जशीट और कानून की ढीली प्रक्रिया के कारण उसे करीब 9 महीने जेल में रहना पड़ता है. बेल पाने के लिए कई सारी पेशियों में जाना पड़ता है और साथ ही जेल में कई परेशानियों को झेलना पड़ता है. इसके कारण उसके करियर, उसकी इमेज, उसके जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. साथ ही उसके परिवार को कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

हंसल मेहता का एक बार फिर काबिले ऐ तारीफ काम
छ: एपिसोड वाली सीरीज SCOOP हंसल मेहता के बेहतरीन काम का एक और example पेश करती है. हंसल मेहता ने सत्य घटनाओं पर कई सारी फिल्मे बनाई है जिनमे शहीद, अलीगढ, ओमेरटा जैसी मूवीज फेमस है साथ ही उनकी Sony liv पर आई सीरीज Scam 1992 भी दर्शको द्वारा खूब सराही गयी थी. इन सबमे एक समानता यह है की ये सब हंसल मेहता साहब का कमाल का काम है जो उन्होंने बॉलीवुड को परोसा है.
हंसल मेहता की फिल्मो में कोर्ट ट्रायल, जेल कस्टडी और Interogattion वाले सीन्स वास्तविकता के बहुत करीब होते है. हंसल मेहता बॉलीवुड में उन चुन्निदा फिल्म निर्देशकों की श्रेणी में आते है जो देश के भ्रष्ट सिस्टम पर खुल कर फिल्मे बनाते है. जो मुद्दे कोई और नही दिखाना चाहता वो अपनी फिल्मो के द्वारा दर्शको को परोसते है. उनकी फिल्मो/सीरीज के मुख्य किरदार कानून से, झूट से लड़ते हुए दिखाई देते है.

दमदार किरदार
हाल ही में Netflix पर आई SCOOP सीरीज में भी जाग्रति पाठक अपने इन्साफ की लड़ाई लड़ रही है. करिश्मा तन्ना ने यह किरदार निभाया है. उनका काम बहुत उम्दा है. एक तलाकशुदा माँ का किरदार जो अपने बच्चे और परिवार को पालने के साथ साथ newspaper कंपनी में काम करती है. जो अपने काम के प्रति उर्जावान है. करिश्मा तन्ना को इससे पहले अपना टैलेंट दिखाने का मौका नही मिला था. मैंने उन्हें मुख्य रूप से कॉमेडी सर्कस रियलिटी शो में देखा था. मगर इस बार उन्हें इंटेंस किरदार निभाते देख लगता है की उन्हें हंसल मेहता जैसे मंझे हुए समझदार निर्देशक की जरूरत थी. शायद इसीलिए कहा जाता है की एक अच्छे कलाकार को अच्छे फिल्म निर्देशक की जरुरत होती है.

जैसे शायद हर्मन बावेजा को भी अच्छे निर्देशक की जरुरत होगी अपनी एक्टिंग Skills दिखाने की. क्योकि उन्होंने जिस तरह से JCP श्रॉफ का किरदार निभाया है वो हमें सरप्राइज करता है की अगर एक अच्छा फिल्म निर्देशक हो, किरदार अच्छा गढ़ा गया हो तो हर्मन बावेजा जैसे एक्टर से भी एक्टिंग निकलवाई जा सकती है. इसी का एक उदाहरण हाल ही में आई सोनाक्षी सिन्हा की सीरीज Dahaad है. जिसमे सोनाक्षी ने अपने करियर की बेस्ट एक्टिंग की है वो भी एक मंझे हुए फिल्म निर्देशक की बदोलत.

मगर कुछ कलाकार ऐसे होते है जो अपनी कला में इतने माहिर होते है की उन्हें किसी की जरुरत नही होती अपनी कलाकारी दिखाने की. जैसे की Scoop सीरीज में इमरान का किरदार निभाने वाले मोहम्मद जीशान अयूब. जिनको हम इससे पहले हीरो के दोस्त और छोटे शहर के आवारा लोंडे के किरदार में ही देखा था मगर इस बार उनका किरदार उनके बाकी किरदारों से अलग है. इस बार वो छोटे शहर के लफंदर नही बल्कि मुंबई जैसे बड़े शहर के बड़े Newspaper में बड़ी पोस्ट के Intellectual इंसान बने है. और उन्होंने ने हमेशा की तरह इस बार भी अपनी एक्टिंग से निराश नही किया.
इनके अलावा और भी कई सारे किरदार है और सभी अपने लेवल पर जितने बेहतरीन ढंग से लिखे गये है उतने ही वो मंझे हुए कलाकारों की बदोलत शानदार ढंग से प्रस्तुत भी किये गये है.

ओवरआल रिव्यु : Scoop रिव्यु
कौन कहता है की सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन मात्र है. हा बेशक मनोरंजन का साधन होगा मगर इसके साथ ही सिनेमा आपको समाज के कुछ गहरे काले सच से सामना करवाता है. वेसे भी आजकल सिनेमा से ज्यादा मनोरंजन का साधन न्यूज़ चैनल हो गये है.
सिनेमा विधा की इस बेहतरीन सीरीज को आपको जरुर देखना चाहिए. जिगना वोरा के उस सच को देखने के लिए जिसे शायद हमने उनकी किताब ” Jigna vora’s Byculla : My Days in Prison ” से नही जाना है. इसे देखना चाहिए Anchit Thakkar के बेहतरीन बैकग्राउंड म्यूजिक, प्रथम मेहता की बढ़िया सिनेमेटोग्राफी, करन व्यास के सधे हुए डायलॉग और एक ईमानदार सीरीज होने के लिए.
क्योकि ऐसा सिनेमा जब आप देखते हो तो आप इस प्रकार की सच्चाई से वाकिफ होते हो. और ऐसी सच्चाई से जब आप परिचित होते हो तो आपके दिमाग के दरवाजे खुलते है. आप एक अच्छे इन्सान बनते है. और एक समझदार नागरिक होने के नाते आप एक अच्छे समाज का निर्माण करते है.