Thai massage movie (2022) review : मजबूत विषय मगर औसत फिल्म .

कौन कहता है की बूढ़े इश्क नही करते ,

करते है मगर लोग उन पर शक नही करते.

Thai massage movie (2022) review : यह पुरानी कहावत या शायरी है जो सबने मजाकिया माहौल में सुनी होगी. मजाक इसलिए क्योकि समाज में हम बुजुर्गो से उम्मीद करते है भगवान की भक्ति की, उच्च आदर्शो वाली बातों की, सबको आशीर्वाद देने की, सबको अच्छी नजरो से देखने की ( अच्छी नजरो से मतलब है की सेक्स सम्बंधित नजर के अलावा हर तरह की नजर ) और समाज में सबको अच्छे संस्कार सिखाने जैसी रूडिवादी बातों की. हम स्वीकार नहीं कर सकते की बूढ़े लोग इश्क भी कर सकते है, की बूढ़े लोग Sex करने की इच्छा रख सकते है. दरअसल हम बूढ़े लोगो को खूब प्यार देते है और उनको भगवान बना देते है मगर उनके इन्सान होने के अधिकार छीन लेते है.

Thai Massage ( 2022 ) Movie Poster- Ekarwaan.com

Thai Massage ऐसे  ही गंभीर विषय पर बनी फिल्म है. जिसको निर्देशित किया है ” मंगेश हडावाले ” ने . जिन्होंने इस फिल्म की कहानी भी लिखी है. कहानी का विषय मजबूत है और सोचने पर मजबूर कर देता है. मगर कहानी शुरुआत में जिस तरह इंटरेस्टिंग रहती है,अंत आते आते ढीली पड़ने लगती है.

मगर थाई मसाज फिल्म का मजबूत पक्ष है इस फिल्म के कलाकारों का मजबूत अभिनय. गजराज राव “आत्मा राव दूबे ” के किरदार में जबर लगते है. उनकी एक्टिंग का वो पहले भी “बधाई हो “ जैसी फिल्म से लोहा मनवा चुके है.

गजराज राव – थाई मसाज

उनके अलावा Amazon Prime सीरीज ” मिर्जापुर ” में मुन्ना भैया का किरदार निभाने वाले ” दिव्येंदु शर्मा ” भी है. जो अपने आप में एक शानदार एक्टर है. इस फिल्म में उन्होंने “संतुलन कुमार ” का किरदार निभाया है जो सबके जीवन का संतुलन बैठाते है मगर उनके खुद का जीवन असंतुलित है. उनका उनकी पत्नी से झगडा हो रखा है, बाल काटने की दूकान में पैर टिकते नही और बड़े ही हरामी टाइप का किरदार है संतुलन कुमार.

दिव्येंदु – थाई मसाज (2022)

बाकी फिल्म का परिवेश है इंदोर शहर का. तो वहां का लहजा किरदारों ने बखूबी पकड़ा है.

बाकी फिल्म के तकनीकी पहलुओ में छायांकन ( सिनेमेटोग्राफी ) G. श्रीनिवास रेड्डी की अच्छी थी. छोटे शहर के वातावरण को अच्छी तरह दिखा पाए.

बाकी फिल्म कैसी है या कैसी नही है ,उन सबसे जरुरी बात यही है की इस फिल्म को देखा जाना चाहिए जरुर. क्योकि फिल्म का विषय बात करता है बुढ़ापे के अकेलेपन की. सेक्स, एक इंसानी प्रवति है. भारत में इसे टेबू ( टेबू का मतलब होता है जब कोई बात या किसी चीज़ को सोच से परे बना दिया जाता है ) बना दिया गया. मगर फिर भी भारत आज दुनिया में पहले नंबर के पायदान को छूने से बस कुछ करीब दूर है जनसँख्या में. और जिसमे कोई वृद्ध इन्सान इसकी बात करता है तो हम उसके ऊपर लांछन लगाने लगते है.

यह फिल्म इसके विषय की वजह से जरुर देखी जानी चाहिए और दिखाई जानी चाहिए. खासकर आज की पीड़ी को और आने वाली पीढ़ी को. ताकि हम इस विषय पर सहज हो सके. क्योकि सिनेमा कला का वह रूप है जो समाज में उद्दार ला सकता है.

इस फिल्म को आप नेट्फ्लिक्स पर देख सकते है.

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